Sunday, July 20, 2014

साक़ी बदल रहे हैं मैक़श भी बदल रहे हैं
नज़रों से पिलाने वाले नज़रें बदल रहे हैं।
साथ चल रहे हैं तो कुछ तन्हां चल रहे हैं
शहरों की तेज़ धूप में तन मन जल रहे हैं।
खता हुई थी हम से  एक भूल से ही सही
किस्से अब तक भी ज़ुबां पे मचल रहे हैं।
फूल से पत्थर बने फ़िर खंज़र बन  गए
उम्मीद के साये में वो अब भी पल रहे हैं।
क़ैसी बहार आई कि पत्ते भी झुलस गए
जाने कैसे  दर्द अब  दिलों  में ढल रहे हैं।
रंग अपना फ़लक़ ने बदल दिया जब से
दरिया भी किनारे अपने तो बदल रहे हैं।
गलत रस्तों पे चलके नस्लें मैली हो गई
कपडे पे दाग़ आते ही कपडे बदल रहे हैं।
ड़ाल रक्खा है मुक़द्दर ने उनकी राहों में
एक वो  हैं  हम से ही बचकर चल रहे हैं। 
   

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