Saturday, February 15, 2014

रंगो खुशबु से गुलज़ार हम भी हैं
इस ज़माने के क़िरदार हम भी हैं।
बदलते रहे ,मौसम के साथ  हम
उसूलों पर क़ायम यार हम भी हैं।
तुझे हुस्न की दौलत मिली है तो
हुस्न के नाज़- बरदार हम भी हैं।
अपनी कोई  निशानी तू देदे मुझे
तेरी खुशबु के तलबगार हम भी हैं।
छुप छुप के चलती हैं हवाएं यहाँ
अब इतने तो समझदार हम भी हैं ।
बेवज़ह शाम तक तू भटकता रहा
हवाओं के तो कर्ज़दार हम भी हैं।
तज़वीज़ करदे अब कोई सज़ा मुझे
तेरी बेबसी के गुनहगार हम भी हैं।
खोटे सिक्के सही पर वज़नी हैं हम
उसकी रहमत के हक़दार हम भी हैं। 



 

No comments:

Post a Comment