उन के भरोसे को कभी भी झूठा नहीं कहा
उनकी ख़ातिर हमने क्या क्या नहीं सहा।
हज़ार क़यामतें गुज़र गई थी सर पे हमारे
छू ली एक एक कर हमने भी सारी इंतिहा।
बिछड़ा मुहब्बत में मुझे इल्ज़ाम देकर वो
दिल में मेरे कभी था जो ख़ुदा बनकर रहा।
हर ग़ाम पर मिला मुझे खुशबुओं का सफर
उसने लेकिन फिर मुझे अपना नहीं कहा।
ख़ुदा किसी को कभी इतना ज़लील न करे
ज़माने ने भी जाने क्या क्या न हमे कहा।
उनकी ख़ातिर हमने क्या क्या नहीं सहा।
हज़ार क़यामतें गुज़र गई थी सर पे हमारे
छू ली एक एक कर हमने भी सारी इंतिहा।
बिछड़ा मुहब्बत में मुझे इल्ज़ाम देकर वो
दिल में मेरे कभी था जो ख़ुदा बनकर रहा।
हर ग़ाम पर मिला मुझे खुशबुओं का सफर
उसने लेकिन फिर मुझे अपना नहीं कहा।
ख़ुदा किसी को कभी इतना ज़लील न करे
ज़माने ने भी जाने क्या क्या न हमे कहा।
No comments:
Post a Comment