Friday, December 19, 2014

दिल को उनसे कोई भी शिक़ायत न रही
बस उनके बिना रहने की आदत न रही।
चांदी की बरसात हुई थी उन के शहर में
मगर  ग़लत मेरी  कभी नीयत  न रही।
मैं आज़ जो कुछ हूँ, उन की बदौलत हूँ
अब  यह आज़माने की ज़रूरत न  रही।
एक तन्हां सी  शमां  जली तमाम रात
चांदनी की  उस पर ही इनायत न रही। 
ज़ुबान पर रहने लगा जब से दर्दे -दिल
दर्द की अब पहली सी कैफ़ियत न रही।
तब आइना देखने का हमें बड़ा चाव था
अब सामना करने की  हिम्मत न रही।
तन्हाई अच्छी लगने लगी मुझको अब
अब दिल पर किसी की हुक़ूमत न रही। 
  

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