मुहब्बत का दम अब तक भरते हैं
जब भी तेरी गली से हम गुज़रते हैं।
बेशक़ भूल गए वायदे तुम वह सब
हमारे दिल में दर्द आज भी पलते हैं।
हर दर्द की भी तो दवा न बन सकी
मुरझाए हुए फूल भी कहां खिलते हैं।
इश्क़ की धूप में हाथ भले जल गए
वह हुस्न देख अब भी आहें भरते हैं।
सलामत रहे आशिक़ी हमारी भी तो
हम रब से दुआ भी यही तो करते हैं।
स्याही उंडेल कर दिल के पन्नों पर
ग़ज़ल गीत कभी कविता लिखते हैं।
सत्येंद्र गुप्ता
जब भी तेरी गली से हम गुज़रते हैं।
बेशक़ भूल गए वायदे तुम वह सब
हमारे दिल में दर्द आज भी पलते हैं।
हर दर्द की भी तो दवा न बन सकी
मुरझाए हुए फूल भी कहां खिलते हैं।
इश्क़ की धूप में हाथ भले जल गए
वह हुस्न देख अब भी आहें भरते हैं।
सलामत रहे आशिक़ी हमारी भी तो
हम रब से दुआ भी यही तो करते हैं।
स्याही उंडेल कर दिल के पन्नों पर
ग़ज़ल गीत कभी कविता लिखते हैं।
सत्येंद्र गुप्ता
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-06-2016) को "स्कूल चलें सब पढ़ें, सब बढ़ें" (चर्चा अंक-2378) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'