बेग़ुनाह को उसने मुज़रिम बना दिया
ख़रोंच को कुरेद कर ज़ख़्म बना दिया !
उसका दर्द मेरे दर्द दर्द से ज़्यादा था
दर्द को ही मैंने तो मरहम बना दिया !
होंठ भी हमारे अब इंचों में हंसते हैं
ख़ुशी को जाने क्यों मातम बना दिया !
आदत पड़ गई मैं को हम कहने की
एक अकेले मैं को भी हम बना दिया !
मैं उसके वास्ते कुछ भी न कर सका
उसने मुझे शर्बते शबनम बना दिया !
खुली जो आँख तो मैं दामन भिगो गया
दर्द को मैंने अपना अहम् बना दिया !
रोती रही गोपियां कृष्ण के ही विरह में
किस पत्थर को हमने सनम बना दिया !
एक खूबसूरत ग़ज़ल लिखने को मैंने
दिल को ही सुनहरी क़लम बना दिया !
-------सत्येंद्र गुप्ता
ख़रोंच को कुरेद कर ज़ख़्म बना दिया !
उसका दर्द मेरे दर्द दर्द से ज़्यादा था
दर्द को ही मैंने तो मरहम बना दिया !
होंठ भी हमारे अब इंचों में हंसते हैं
ख़ुशी को जाने क्यों मातम बना दिया !
आदत पड़ गई मैं को हम कहने की
एक अकेले मैं को भी हम बना दिया !
मैं उसके वास्ते कुछ भी न कर सका
उसने मुझे शर्बते शबनम बना दिया !
खुली जो आँख तो मैं दामन भिगो गया
दर्द को मैंने अपना अहम् बना दिया !
रोती रही गोपियां कृष्ण के ही विरह में
किस पत्थर को हमने सनम बना दिया !
एक खूबसूरत ग़ज़ल लिखने को मैंने
दिल को ही सुनहरी क़लम बना दिया !
-------सत्येंद्र गुप्ता
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