Sunday, July 24, 2016

मिजाज सबका ही बदल रहा है
चिराग हवाओं मे भी जल रहा है
जिस पहाड़ी पर बरफ गिरी थी
पत्थर उसका ही तो गल रहा है
कल गुरूर ही गुरूर था उसमे
आज गुरूर उसका पिघल रहा है
कभी जिसने देखा था न मुझको
साथ मेरे अब वही चल रहा है
आज आदमी मरने से पहले ही
हर लम्हा तिल तिल गल रहा है
न जख्म है न निशान है दिल पर
दर्द सीने मे तो मगर पल रहा है
दोस्त को आगे बढता देख कर
दिल ही दिल मे वह जल रहा है
गलती से पूज दिया था जिसको
खुदा बन कर वही तो छल रहा है
किस को फुरसत है जो सोचे
चलने दो अब जैसा चल रहा है

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