प्यार तो कर लूं मैं इजाज़त कहाँ से लाऊँ
इश्क़ में देने को ज़मानत कहाँ से लाऊँ
हवा महकती थी कभी ख़ुशबू से मेरी ही
चूक गई अब वह दौलत कहाँ से लाऊँ
रात बड़ी काली थी तोड़कर ही रख दिया
धूप निकल गई वो क़यामत कहाँ से लाऊँ
तुम भी मुझ को बेवफ़ा कह कर चले गए
बेवफ़ाई करने की आदत कहाँ से लाऊँ
यक़ीनन दुआ मेरी भी तो क़ुबूल हो जाती
तुम जैसी मगर मैं सियासत कहाँ से लाऊँ
तुझसे भी एक दिन बिछड़ना है ज़िन्दगी
सदा साथ रहने की रवायत कहाँ से लाऊँ
जाने वह कैसा है देखा नहीं जिसको कभी
उसके साथ रहने की चाहत कहाँ से लाऊँ
माँ तेरे आँचल तले सीखी थी जो लेट कर
तुतलाई हुई भाषा में आयत कहाँ से लाऊँ
दिल बच्चा होने को मचलता है आज भी
बचपन की अब वो शरारत कहाँ से लाऊँ
दिल का पैमाना अभी तक खाली है मेरा
साक़ी तेरे यार की अमानत कहाँ से लाऊँ
वह अपने साथ मेरी वहशत भी ले गया
अब दर्द सहने की ताक़त कहाँ से लाऊँ
यक़ीन है खुद मेरी हर एक शै संवारेगा
उसकी मगर इतनी इनायत कहाँ से लाऊँ
आयत --- धार्मिक चौपाई
------सत्येंद्र गुप्ता
इश्क़ में देने को ज़मानत कहाँ से लाऊँ
हवा महकती थी कभी ख़ुशबू से मेरी ही
चूक गई अब वह दौलत कहाँ से लाऊँ
रात बड़ी काली थी तोड़कर ही रख दिया
धूप निकल गई वो क़यामत कहाँ से लाऊँ
तुम भी मुझ को बेवफ़ा कह कर चले गए
बेवफ़ाई करने की आदत कहाँ से लाऊँ
यक़ीनन दुआ मेरी भी तो क़ुबूल हो जाती
तुम जैसी मगर मैं सियासत कहाँ से लाऊँ
तुझसे भी एक दिन बिछड़ना है ज़िन्दगी
सदा साथ रहने की रवायत कहाँ से लाऊँ
जाने वह कैसा है देखा नहीं जिसको कभी
उसके साथ रहने की चाहत कहाँ से लाऊँ
माँ तेरे आँचल तले सीखी थी जो लेट कर
तुतलाई हुई भाषा में आयत कहाँ से लाऊँ
दिल बच्चा होने को मचलता है आज भी
बचपन की अब वो शरारत कहाँ से लाऊँ
दिल का पैमाना अभी तक खाली है मेरा
साक़ी तेरे यार की अमानत कहाँ से लाऊँ
वह अपने साथ मेरी वहशत भी ले गया
अब दर्द सहने की ताक़त कहाँ से लाऊँ
यक़ीन है खुद मेरी हर एक शै संवारेगा
उसकी मगर इतनी इनायत कहाँ से लाऊँ
आयत --- धार्मिक चौपाई
------सत्येंद्र गुप्ता
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