तुमसे न लड़ते तो किस से लड़ते हम
तुम्हारे साथ साथ कितना चलते हम
तुम्हारे साथ साथ कितना चलते हम
एक तुम्ही थे जिसने हमें बेवफ़ा कहा
मर नही जाते तो फिर क्या करते हम
मर नही जाते तो फिर क्या करते हम
पयार के सांचे मे हम जिस के ढले थे
उससे वादा खिलाफी कैसे करते हम
उससे वादा खिलाफी कैसे करते हम
वक्त ने भी तो हमको पत्थर बना दिया
मोम के माफिक अब कैसे पिघलते हम
मोम के माफिक अब कैसे पिघलते हम
अच्छा हुआ तनहाईयों ने अपना लिया
दुनिया बहुत बड़ी है कहां भटकते हम
दुनिया बहुत बड़ी है कहां भटकते हम
जाने क्या मजबूरी थी हम अश्क पी गए
बादलों की तरह से कितना बरसते हम
बादलों की तरह से कितना बरसते हम
---- सतेन्द्र गुप्ता
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-07-2016) को "मौन हो जाता है अत्यंत आवश्यक" (चर्चा अंक-2413) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
ReplyDeletedhanywaad shastri ji is charcha ke liye
ReplyDeletedhanywaad shastri ji is charcha ke liye
ReplyDeletedhanywaad shastri ji is charcha ke liye
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