तीन मिसरी शायरी ------
तिरोहे --
मुक्तक , रुबाई , छंद सब ही चार लाइनों के होते हैं कवि , गीतकार , ग़ज़लकार भी अपनी बात को चार लाइनों में यानि चार मिसरो में ही पूरी तरह से कह पाते हैं। इधर मैंने तीन मिसरो में अपनी बात को पूरी तरह से कहने का प्रयास किया है। तीन मिसरो में बात कहने और सुनने वाले को एक अतिरिक्त आनंद की प्राप्ति होती है। उदाहरण के लिए ,
पाँव डुबोये बैठे थे पानी में झील के
चांद ने देखा तो हद से गुज़र गया
आसमां से उतरा पाँव में गिर गया
सच ढूंढ़ने निकला था
झूठ ने मुझे घेर लिया
सच ने मुंह फेर लिया
बहुत तक़लीफ़ सहकर पाला मां ने
मां की झुर्रियां बेटे की जवानी हो गई
वक़्त बीतते बीतते मां कहानी हो गई
शान से ले जाती है जिसको भी चाहे
दर पर खड़ी मौत फ़क़ीर नहीं होती
उसके पास कोई तहरीर नहीं होती
इन तीन लाइनों की शायरी पर मुझको इंडियन वर्चुअल यूनिवर्सिटी फॉर पीस एंड एजुकेशन , बंगलोर द्वारा मुझको डॉक्टर ऑफ़ हिंदी लिटरेचर की मानिद उपाधि से नवाज़ा गया। यह मेरे द्वारा इज़ाद की गई बिलकुल एक नई विधा है जिसको मैंने नाम दिया है -- तिरोहे -- तीन मिसरी शायरी। इसमें पहला मिसरा स्वतंत्र है। दूसरा और तीसरा मिसरा क़ाफिये और रदीफ़ में है। तीसरा मिसरा शेर की कैफियत में चार चाँद
लगा देता है उसको बुलंदियों तक पहुंचा देता है। तीसरे मिसरे को मिसरा ऐ ख़ास कहा है।
-------- डॉक्टर सत्येंद्र गुप्ता
----- नज़ीबाबाद