Saturday, August 8, 2015

वो कहते हैं  हमें प्यार करना नहीं आया
हम बोले उन्हें हद से गुज़रना नहीं आया। 

रुतबे में क़मतर नहीं हूँ मैं चाँद सूरज से
मेरा सदक़ा ही उनको करना नहीं आया। 

गुज़रते रहे घर के ऊपर से बहुत बादल  
सावन की घटा को बरसना  नहीं आया। 

यूँ तो सालों साल का है रिश्ता हमारा भी 
हमको  उनके सांचे में ढ़लना नहीं आया। 

खुशबू उन की सीने में तूफ़ान मचाती है 
वो ग़ुल है गुलशन में खिलना नहीं आया। 

शराब तो बोतल में ही रहती है अरसे से 
बोतल को कभी  नशा करना नहीं आया।

जी भर कर पी इस ग़मज़दा ने तो साक़ी 
मगर इन क़दमों को बहकना नहीं आया। 

उनकी सादगी का ज़िक्र कितना करें हम 
उन्हें चाँद को भी चाँद कहना नहीं आया। 

दैर थे हरम भी थे उनके दर आस्ताँ भी थे 
क्या करें हमको ही कहीं रहना नहीं आया। 

दैर  -मंदिर ,हरम -मस्जिद ,आस्ताँ -ड्योढ़ी 




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