गुज़रे हुए लम्हों का ज़िक्र क्या करें
सूखे हुए ज़ख़्मों का ज़िक्र क्या करें।
उम्र गुज़ार दी ख़ुद को ही सजाने में
अपनी वहशतों का ज़िक्र क्या करें।
तेरे दर्द का ज़िक्र ही बहुत है शहर में
हम अपने दुखों का ज़िक्र क्या करें।
रहज़न बन कर जो हमनुमा बने रहे
अपने उन रिश्तों का ज़िक्र क्या करें।
तूने भी तो बहुत आज़माया है ज़िंदगी
तेरी भी हक़ीक़तों का ज़िक्र क्या करें।
ऐ मौत तुझ से तो निबट ही लेते हम
मगर तेरे फ़रिश्तों का ज़िक्र क्या करें।
ख़ुदा तूने सब कुछ तो दिया है हमको
बता तेरी रहमतों का ज़िक्र क्या करें।
सूखे हुए ज़ख़्मों का ज़िक्र क्या करें।
उम्र गुज़ार दी ख़ुद को ही सजाने में
अपनी वहशतों का ज़िक्र क्या करें।
तेरे दर्द का ज़िक्र ही बहुत है शहर में
हम अपने दुखों का ज़िक्र क्या करें।
रहज़न बन कर जो हमनुमा बने रहे
अपने उन रिश्तों का ज़िक्र क्या करें।
तूने भी तो बहुत आज़माया है ज़िंदगी
तेरी भी हक़ीक़तों का ज़िक्र क्या करें।
ऐ मौत तुझ से तो निबट ही लेते हम
मगर तेरे फ़रिश्तों का ज़िक्र क्या करें।
ख़ुदा तूने सब कुछ तो दिया है हमको
बता तेरी रहमतों का ज़िक्र क्या करें।
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