Wednesday, August 5, 2015

अपनी  वहशत का  अंदाज़ नहीं था  
उसकी ज़रूरत  का अंदाज़ नहीं था। 

घड़ी तो बेशकीमती बंधी थी हाथ में 
वक़्त की क़ीमत का अंदाज़ नहीं था।

चाँद नहीं चाँद  की सूरत है  वह  तो 
उसकी  हैसियत का अंदाज़ नहीं था। 

क़रीने से ही सजा है दिल भी उसका 
उस  की सीरत का  अंदाज़ नहीं था।

साथ बचपन से  ही खेली है  मेरे वह
उस की हसरत का  अंदाज़ नहीं था। 

मेरी ही हम उम्र है  ख़ुश्बू भी उसकी 
उस की निक़हत का अंदाज़ नहीं था। 

मेरी ज़िंदगी है  मेरी ज़रूरत  है वह 
इस  हक़ीक़त  का  अंदाज़  नहीं था। 

उसने नवाज़ा है मुझे हसीं तौफ़े से 
उस की रहमत का अंदाज़ नहीं था। 

    निकहत - ख़ुश्बू 

  




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