Tuesday, August 11, 2015

अपनी ही करतूत पर हंसी आ गई 
दिल में कोई तमन्ना नई आ गई।

शाम नई ,रात नई, रौशनी भी नई 
एक नए मोड़ पर ज़िंदगी आ गई। 

याद आई उनकी इतनी शिद्दत से 
लगा उड़ कर खुशबु उनकी आ गई। 

इस क़दर मिले वह  भीड़ में मुझको 
ज्यों तपती हुई धूप में नमी आ गई। 

उनको  पाकर मैं पागल सा हो गया 
आदत मुझमे एक ये अच्छी आ गई। 

चाँद भी आसमान में मुस्करा रहा था 
प्यार करने  उसे  भी  चांदनी आ गई। 

यादोँ क़िस्सों में  ही जो बसा करती है 
हाथ में  मुहब्बत  की  हवेली आ गई। 

  


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