Wednesday, August 12, 2015

उम्र तो कट गई शामे- उम्र नहीं कटती
दिन भी कट जाता है शाम नहीं कटती।

झुर्रियां पड़ गई चेहरे पर जब से दोस्त
तस्वीर भी अब यह अच्छी नहीं लगती।

मिल जुल कर रहते थे हम बहुत खुश थे
तन्हाई भी अब हम से बात नहीं करती।

मत कहो मेरे पास कुछ नहीं है देने को
प्यार की ये दौलत कभी भी नहीं घटती।

कोई तो मुझको भी उम्मीदों से भर देता
ज़िंदगी फिर बची हुई यूँ ही नहीं गुज़रती।

मैं पक गया हूँ मुझको भी टूटना ही तो है
मैं वह हस्ती नहीं जो कभी नहीं मिटती।

ख़ुदा महफ़ूज़ रखना इस सदमे से सबको
इस सदमे से ज़ान भी तो नहीं निकलती।

       शामे उम्र - बुढ़ापा






2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-08-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2066 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

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