Monday, August 10, 2015

प्यार तो कर लूं ,शिनाख़्त कहाँ से लाऊँ 
इश्क़ में देने को  ज़मानत कहाँ से लाऊँ। 

हवा महकती थी कभी मेरी ही खुशबू से 
चूक गई अब  वह  दौलत कहाँ से लाऊँ। 

तुम भी बेवफ़ा मुझे ही कहकर चले गए 
वफ़ा न करने की मैं आदत कहाँ से लाऊँ। 

रात बड़ी लम्बी थी आँखों में ही कट गई 
धूप निकल गई , क़यामत कहाँ से लाऊँ। 

यक़ीनन  दुआ मेरी भी  क़ुबूल हो जाती 
तुम जैसी पर मैं सियासत कहाँ से लाऊँ।

तुझसे भी एक दिन बिछड़ना है ज़िंदगी 
सदा संग रहने की रिवायत कहाँ से लाऊँ।

तेरे आँचल के तले माँ सीखी थी लेटकर 
वो तोतली भाषा में आयत कहाँ से लाऊँ। 

दूसरी पारी की तैयारी में तो लगा हूँ  मैं 
मैं सितमगर तेरी इज़ाज़त कहाँ से लाऊँ। 

दिल का पैमाना मेरा  खाली है  अभी भी 
साक़ी तेरे यार की अमानत कहाँ से लाऊँ। 

वो क़ाफ़िला बहार का जाने कैसे आएगा 
गांधी तेरे सपनों का भारत कहाँ से लाऊँ। 



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