Wednesday, December 11, 2019

गज़ल तिरोही
हम इक पल में सदियाँ लुटा देते हैं
वक्त को हर जानिब महका लेते हैं
हर लम्हा मुहब्बत से सजा लेते हैं
जाने फिर मोहलत मिले न मिले
हर तस्वीर से दिल बहला लेते हैं
हम ग़ैरों से भी रिश्ते बना लेते हैं
पुराने जख़्म फिर से हरे न हो जाएं
वक्त रहते उन पे मरहम लगा लेते हैं
हम सबके गम सीने से लगा लेते हैं
ख़ुशबू लुटाने को जब खुदा कहता है
उसकी अदालत में सिर झुका लेते हैं
उसकी ख़ुशबू में खुदाई लूटा लेते हैं
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता
तिरोही गज़ल
कोई खूबसूरत सा शहर देख लेते
या दिल का मेरा ये नगर देख लेते
मुझे अपनी खुशबू में तर देख लेते
होश में रहकर के इश्क नहीं होता
दिल में मेरे तुम उतर कर देख लेते
अपनी मुहब्बत का असर देख लेते
सुकून इतना मिलता न दैरो हरम में
सुकून मिलता जो मेरे घर देख लेते
इश्क का तुम भी जिगर देख लेते
दूर तक फैल जाती खुशबू हमारी
मेरे प्यार करने का हुनर देख लेते
इन्तेहा ए इश्क का असर देख लेते
दैरो हरम - मंदिर मस्जिद
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

Friday, September 13, 2019


      तिरोहे  मुझको मा सरस्वती
प्र्साद  के रूप में देती है मैं आगे  बांट देता हूँ

  हिंदी दिवस के दिन हिंदी 
               दुल्हन बनी इतराती है

हिंदी तू  भी अब  एक दिवसीय  मेहमान हो गई
हर साल हिंदी दिवस का त्यौहार मनाने आती है
अगले  साल फिर आऊंगी कहके चली जाती  है

अतिथि देवो भव की तर्ज़ पर , हिंदी तू भी हर बरस
सुबह  सबेरे भारत की मेहमान बनकर ही आती है
और ज़श्न मनाकर देर  रात गये तू चली भी जाती है

नये दौर के चाल चलन तूने भी हिंदी अब सीख  लिये
उस एक दिन में ही तू इतनी मोह्ब्बत बरसा जाती  है
अगले साल फिर आने का पक्का वायदा कर जाती है

एक दिन का मेहमान भी दिल को नहीं अखरता है
किसी का क्या लेती है आती है और चली जाती है
अपने हिस्से की ज़िंदगी एक ही दिन में जी जाती है

हिंदी दिवस की नई नवेली दुल्हन बन कर  हिंदी
सारा दिन ही  हिंदी  का मधु च्नद्र दिवस मनाती है
देर रात गये चले जाने की गुस्ताखी  कर जाती  है

अब हिंदी - हिंदी दिवस इस तरह ही मनाती है

         डोक्टर  सत्येंद्र गुप्ता
            मो   9837024900

Wednesday, May 15, 2019


तीन मिसरी शायरी कुछ नये 
              तिरोहे
    सदिया गुज़र गई कोइ तिरोहा
ही नहीं लिख् पाया - इधर मा सरस्व्ती 
की क्रिपा मुझ पर इतनी बरस रही है कि 
आज़कल मुझसे तीन मिसरी शायरी के अलावा
कुछ और  लिख ही नहीं पाता - कुछ तिरोहे पेश 
हैं
क़ाश इंसान  खुद  की क़ब्र खुद बना पाता
सोने  चांदी की दीवारोन से उसे सजा जाता
फिर सुक़ून से उससे वहान भी न रहा जाता

वो कहते हैं यह ज़िंदगी जिनकी बहुत हसीन है
जिनके हिस्से मे खुशिया ज़्यादा हैं गम  थोडा है
वह  क़्या कहे गम ने जिसको तोडा ही  तोडा है

देखना अपने दर्द को हिफाज़त से पालना
सुख तो मेहमान है  आयेगा चला जायेगा
दर्द ही है जो आखिर तक़ साथ निभायेगा

शराबे तमन्ना लिये बैठा रहा उनके क़रीब मैं
साक़ी ने पैमाना मुझे छोड उनको थमा दिया
मुझको आंखो में आंखे डाल के  बहला दिया

कहते हैं इस वक़्त का कुछ पता नहीं
यह क़िसी को भी वज़ीर बना सकता है
नज़ीर को पल में  फक़ीर बना सकता है

हम सच को रखते हैं तहो  में छिपाकर
हम डर की सिलवटो में छिपे  इंसान हैं
हम समाज़ के खौफ से डरे मेहमान हैं

       डा सतयेंद्र गुप्ता


Thursday, March 14, 2019

     

   तिरोहे तीन मिसरी शयरी
इश्क़ का अलग दस्तूर देखा
जिनको भूलाने में ज़माने लगे
मुझे देख वह मुस्कराने लगे
दिल से निकल गए थे जिनके
दिल में फिर वो घर बसाने लगे
हम दिल ही दिल शरमाने लगे
इश्क़ अदा है वफा है या दुआ
वो सबकी बिसात बिछाने लगे
हम भी खुद को समझाने लगे
कुछ सिफत थी उन आखों में
हम आईना उनको दिखाने लगे
और खुद से नजरें मिलाने लगे
देर आये दुरुस्त आये तो सही
हम भी दिल को समझाने लगे
संग साथ जिन्दगी बिताने लगे
मुकम्मिल है शायरी मेरी यह
तीन मिसरी शायरी बनाने लगे
तिरोहे ह्म्म गाकर सुनाने लगे
--- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

Monday, March 11, 2019





   एक कविता तिरोही
चुप रहती है जब तक़ बोतल मे बंद है
बाहर निकलते ही गज़ब बहुत ढ़ाती है
पैमाने में भरते भरते भी छ्लक जाती है
कितना खूबसूरत अंदाज़ है इसका भी
होठों को चूमने को बेताब हुई जाती है
महबूब बनकर गले से लिपटती जाती है
बहुत बवाल मचाती है यह शराब भी तो
जैसे जैसे गले से नीचे उतरती जाती है
रंगत अपनी असली दिखाती जाती है
आदमी को आदमी रहने नहीं देती वह
रह रह कर उसके सर पर चढ़ी जाती है
अच्छे आदमी को बना शराबी जाती है
------ डॉ सत्येन्द्र गुप्ता



     तिरोहे तीन मिसरी शायरी
कोई वायदा ना कोई क़रार लेकर आए
वो अपना कमसिन शबाब लेकर आए
पहली मुहब्बत का खवाब लेकर आए
कुछ दिखाया न कुछ छिपाया उन्होंने
हया का वो ऐसा नक़ाब लेकर आए
अदाओं की हसीन क़िताब लेकर आए
चेहरे पर भी नूर ए इश्क़ चमक रहा था
जैसे चौदहवीं का माहताब लेकर आए
दिल को भी अपने बेताब लेकर आए
सब्र का पैमाना छलक उठा मेरा भी तो
आखों से पीने की शराब लेकर आए
आंखों मे सुरूर बे हिसाब लेकर आए
अजब अंदाज़ था दिल की चोरी का भी
क़तरा क़तरा अपना हिसाब लेकर आए
मेरे मुहब्बत का भी सैलाब लेकर आए
------डॉ सत्येन्द्र गुप्ता




    तिरोहे तीन मिसरी शायरी
शहीद हुए पुलवामा में जो श्रद्धान्जली उन्हें देने को
वंदे मातरम की हमने अब अलख नई जगा दी है
आतंकवाद की होली भी पार सरहद ही जला दी है
नहीं खेलने देंगे किसी को भी मां तेरे सम्मान से हम
सरफिरे लोगो को हमने यह बात अब समझा दी है
मां तेरे सपूतों ने तेरी रक्षा करने की दिल
में ठानी है
न छीन सकेगा कोई मां तुझसे तेरे स्वाभिमान को
घर घर में जन्मे भगत सिंह रानी लक्ष्मीबाई है
नए अंदाज़ में मां तेरी जय जयकार हमें
सुनानी है
बरसों गुलामी सह हमने दौलत देश भक्ति
की कमाई थी
न लुटने देंगे इस सम्पदा को कसम सबने ये
खाई है
ये साहस धैर्य और देशभक्ति मां तुझ पर ही बलिहारि है
जंग लगे हथियारों पर हमने अब धार तेज़
लगवा दी है
नए अंदाज़ में वंदे मातरम की आवाज भी
सबको सुना दी है
आतंकवाद की होली हमने पार सरहद के जला दी है
----- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता
   

    तिरोहे तीन मिसरी शायरी
इश्क़ का उनको तजुर्बा नहीं है
कहने को वो आशिक़ पुराने हैं
अब जाना वो मेरे भी दिवाने हैं
नाम हमारा आया साथ में जब
तो कहीं जाकर मुझे पहचाने हैं
मुझे देखकर ही लगे शरमाने हैं
लोग लम्हों की कीमत न जाने
लम्हा लम्हा कर बीते ज़माने हैं
इश्क़ के वादे सबको निभाने हैं
-----डॉ सत्येन्द्र गुप्ता
   



       तिरोहे-
तीन मिसरी शायरी
चांद को पा लेने की हसरत न मिटी
बता ज़मीं पर उसको क़ैसे उतारें हम
दूर से भी उसको कितना निहारें हम
फासला न रखें तो फिर क्या करें हम
किस तरह साथ उसके चला करें हम
उसके गम का आखिर क्या करें हम
दिल का दर्द तस्वीरों में भर दिया हमने
लकीरों को कितना और गहरा करें हम
क्यों बार बार आईना ही देखा करें हम
मिला है मुझे ही हमसफर ऐसा क्यों
कैसे उसका चरचा किया करें हम
बता क्यों उसका ही सजदा करें हम
--डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

Wednesday, February 27, 2019

मैं सत्येन्द्र गुप्ता नजीबाबाद जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ
कविता गीत छंद या गजल में
अपनी बात कहने और उसे पूरा करने के लिए चार लाइनों यानि चार मिसरो की आवश्यकता होती है । मैंने अपनी बात कहने और पूरी करने के लिए चार नहीं तीन मिसरो का एक नया सिलसिला शुरू किया है । तीन मिसरो में उसकी सुन्दरता में चार चांद लग जाते हैं चौथे मिसरे की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है ।यह एक
नई विधा है जिसे मैंने नाम दिया है -- तिरोहे -- तीन मिसरी शायरी । इस विधा पर इन्डियन वर्चुअल यूनिवर्सिटी फार पीस एंड एजुकेशन बंगलौर ने मुझे डाक्टर आफ हिंदी साहित्य की मानिद उपाधि से नवाज़ा है तिरोहे लिखते हुए मुझे असीम सुख का एहसास होता है ।तिरोहे वास्तव मेँ अतीत और वर्तमान की भावनात्मक यात्रा का अदभुत परिणाम है एक अनूठा प्रयास है ।तिरोहे में पहला मिसरा स्वतंत्र है दूसरा और तीसरा मिसरा रदीफ और काफिए मे है
बदसूरत हो गया अब चेहरा बहुत
नया शीशा मंगाने से क्या फायदा
झूठी शान दिखाने से क्या फायदा
अपनी ही फकीरी में मस्त रहता हो
फिर ऐसा कोई संत कबीर न मिला
प्यादे बहुत मिले कोई वज़ीर न मिला
भूखे पेट मां ने कभी सोने न दिया
खुद सो गई मुझे खिलाते खिलाते
थक गई मां कहानी सुनाते सुनाते
---- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता
तीन मिसरी शायरी
एक तिरोही गज़ल
सजदे करेगा बुढापा जब भी चौखट पर
मुझे अपनी अल्हड़ जवानी याद आएगी 
नए लिबास में महक पुरानी याद आएगी
तरसा करेंगी ख्वाब को जब कभी रातें
हवाओं की यह छेड़ खानी यादआएगी
यह फ़िजा यह रूत सुहानी याद आएगी
चेहरे पर नुमायां होगें उम्र के जब निशां
चेहरे पर वो ज़िल्द चढ़ानी याद आएगी
बच्चों जैसी उनकी शैतानी याद आएगी
क़मर क़मान थी उनकी निगाहें तीर थी
उनकी वह मदमस्त जवानी याद आएगी
खौलते लहू की गर्म रवानी याद आएगी
शहरयारी की तमन्ना थी तेरे ही शहर में
यह कूचे ये गलियां पुरानी याद आएगी
कुछ घटाएँ काली तूफानी याद आएगी
बहुत पिया है इश्क का ज़हर हमने भी
रह रह कर मीरा दीवानी याद आएगी
दौर ए वक्त की सुल्तानी याद आएगी
जब मेरा यार मुझसे दूर चला जाएगा
शबे हिज़्र उसकी मेहमानी याद आएगी
गज़ल उसकी वही पुरानी याद आएगी
मैं और मेरा आईना तन्हा ही रह जाएंगे
उनकी दी कोई निशानी याद आएगी
टूटी-फूटी सी यही कहानी याद आएगी
------ डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

Sunday, February 10, 2019



मेरी नयी खोज

तीन मिसरी शायरी 

  एक तिरोही ग़ज़ल
दिन उनके भी तो बदलेंगे कभी
लिए दिल में जो ये आस रहते हैं
अक्सर जो  फटे लिबास रहते हैं

हमाम में वह  सब के सब नंगे हैँ
वोह भी जो बाहर  ख़ास रहते हैं
जाने कैसे उनके एहसास रहते हैं

इश्क की आग में धुआं नहीं होता
अब ठिठरते हुए  मथुमास रहते है
बहार आने पर भी उदास रहते हैं

तुम्हारे गम ने मारा जीते जी हमको
गम दिल के अब आस पास रहते हैं
लेते फिर भी मगर हम सांस रहते हैं

वो जब कभी लिबास नया पहनते हैं
कितने ही आईने उनके पास रहते हैं
खोए हुए उनके होशो हवास रहते हैं
----------डॉ सत्येन्द्र गुप्ता


महोदय 

मैं सत्येन्द्र गुप्ता नजीबाबाद जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ ।
कविता गीत छंद या गजल में 
अपनी बात कहने और उसे पूरा करने के लिए चार लाइनों यानि चार मिसरो की आवश्यकता होती है । मैंने अपनी बात कहने और पूरी करने के लिए चार नहीं तीन मिसरो का एक नया सिलसिला शुरू किया है । तीन मिसरो में उसकी सुन्दरता में चार चांद लग जाते हैं चौथे मिसरे की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है ।यह एक
नई विधा है जिसे मैंने नाम दिया है -- तिरोहे -- तीन मिसरी शायरी । इस विधा पर इन्डियन वर्चुअल युनिवर्सिटी  फॉर  पीस एंड एजुकेशन  बंगलौर ने मुझे डाक्टर ऑफ़  हिंदी साहित्य की मानिद उपाधि से नवाज़ा है - तिरोहे लिखते हुए मुझे असीम सुख का एहसास होता है ।तिरोहे वास्तव मेँ अतीत और वर्तमान की भावनात्मक यात्रा का अदभुत परिणाम है - एक अनूठा प्रयास है ।तिरोहे में पहला मिसरा स्वतंत्र है  दूसरा और तीसरा मिसरा रदीफ और काफिए मे है 

बदसूरत हो गया है अब शीशा बहुत
नया शीशा मंगाने से क्या फायदा
झूठी शान दिखाने से क्या फायदा

अपनी ही फ़क़ीरी  में मस्त रहता हो
फिर ऐसा कोई संत क़बीर  न मिला
प्यादे बहुत मिले कोई वज़ीर न मिला

भूखे पेट मां ने कभी सोने न दिया 
खुद सो गई मुझे खिलाते खिलाते
थक गई मां कहानी सुनाते सुनाते

           ---- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

Saturday, February 9, 2019



        तीन मिसरी शायरी

       तिरोही  ग़ज़ल 

दिन उनके भी तो बदलेंगे कभी ये
लिए दिल में वो यही आस रहते हैं [
वो जो अक़्सर फटे लिबास रहते हैं

हमाम में तो सारे के सारे  ही नंगे हैँ
वो भी जो बाहर सबसे ख़ास रहते हैं
जाने कैसे से उन में एहसास रहते हैं

इश्क़ की आग में धुआं नहीं उठता
रूठे रूठे से यह मधुमास रहते हैं
मुसलसल बादल भी बेआस रहते हैं

तुम्हारे गम ने मारा जीते जी हमको
 गम दिल  के ही आस पास रहते हैं
लेते फिर भी मगर हम सांस रहते हैं


वो जब कभी लिबास नया पहनते हैं
कितने ही आईने उनके पास होते हैं
बहके  से उनके होशो हवास रहते हैं

Thursday, February 7, 2019

तिरोहे -------तीन मिसरी शायरी 

                  के 

             जन्म दाता 

          डॉ   सत्येंद्र गुप्ता 
               -----  नजीबाबाद  
                        जि बिजनौर 
                       उत्तर प्रदेश 
             


मैं सत्येन्द्र गुप्ता नजीबाबाद जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ ।
कविता गीत छंद या गजल में 
अपनी बात कहने और उसे पूरा करने के लिए चार लाइनों यानि चार मिसरो की आवश्यकता होती है । मैंने अपनी बात कहने और पूरी करने के लिए चार नहीं तीन मिसरो का एक नया सिलसिला शुरू किया है । तीन मिसरो में उसकी सुन्दरता में चार चांद लग जाते हैं चौथे मिसरे की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है ।यह एक 
नई विधा है जिसे मैंने नाम दिया है -- तिरोहे -- तीन मिसरी शायरी । इस विधा पर इन्डियन वर्चुअल यूनिवर्सिटी फार पीस एंड एजुकेशन बंगलौर ने मुझे डाक्टर आफ हिंदी साहित्य की मानिद उपाधि से नवाज़ा है तिरोहे लिखते हुए मुझे असीम सुख का एहसास होता है ।तिरोहे वास्तव मेँ अतीत और वर्तमान की भावनात्मक यात्रा का अदभुत परिणाम है एक अनूठा प्रयास है ।तिरोहे में पहला मिसरा स्वतंत्र है दूसरा और तीसरा मिसरा रदीफ और काफिए मे है 
बदसूरत हो गया है अब शीशा बहुत 
नया शीशा मंगाने से क्या फायदा 
झूठी शान दिखाने से क्या फायदा
अपनी ही फकीरी में मस्त रहता हो 
फिर ऐसा कोई संत कबीर न मिला 
प्यादे बहुत मिले वजीर न मिला
भूखे पेट मां ने सोने नहीं दिया 
खुद सो गई मुझे खिलाते खिलाते 
थक गई मां कहानी सुनाते सुनाते
---- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

Sunday, January 6, 2019

महोदय,
रुबाई ,मुक्तक,छ्न्द चार लाइनो में ही कहा जाता है इनको तीन लाइनो में कहने का मैंने प्र्यास किया है - गज़ल में भी शेर और मतला चार लाइनो में होता है यानि चार मिसरो का होता है - इस्को भी तीन लाइनो मे कहा है -यह एक नई विधा है जिसको मैंने नाम दिया है --तिरोहे --तीन मिसरी शायरी - इस नई विधा पर इंडियन वर्चुअल युनिव्र्सिटी ऑफ पीस एअंड एजुकेशन बंग्लोरे ने मुझे मास्टऑफ हिंदी लिट्रेचर की मानिक डिग्री से नवाज़ा है तीन मिसरो में कहने और सुनने वाले को अतिरिक्त आन्अंद की प्राप्ति होती है और तीन लाइनो में उसकी सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं -जेसे
पांव डुबोये बैठे थे पानी में झील के
चांद ने देखा तो हद से गुज़र गया
आसमान से उतरा पांव में गिर गया
बहुत तकलीफ सह कर पाला मा ने
मा की झुरिर्या बेटे की जवानी हो गई
वक्त बीतते बीतते मा कहानी हो गई
शान से ले जाती है जिसको भी चाहे
दर पर खडी मौत फक़ीर नहीं होती
उसके पास कोई तहरीर नही होती
डा सत्येंद्र गुप्ता