Thursday, February 7, 2019



मैं सत्येन्द्र गुप्ता नजीबाबाद जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ ।
कविता गीत छंद या गजल में 
अपनी बात कहने और उसे पूरा करने के लिए चार लाइनों यानि चार मिसरो की आवश्यकता होती है । मैंने अपनी बात कहने और पूरी करने के लिए चार नहीं तीन मिसरो का एक नया सिलसिला शुरू किया है । तीन मिसरो में उसकी सुन्दरता में चार चांद लग जाते हैं चौथे मिसरे की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है ।यह एक 
नई विधा है जिसे मैंने नाम दिया है -- तिरोहे -- तीन मिसरी शायरी । इस विधा पर इन्डियन वर्चुअल यूनिवर्सिटी फार पीस एंड एजुकेशन बंगलौर ने मुझे डाक्टर आफ हिंदी साहित्य की मानिद उपाधि से नवाज़ा है तिरोहे लिखते हुए मुझे असीम सुख का एहसास होता है ।तिरोहे वास्तव मेँ अतीत और वर्तमान की भावनात्मक यात्रा का अदभुत परिणाम है एक अनूठा प्रयास है ।तिरोहे में पहला मिसरा स्वतंत्र है दूसरा और तीसरा मिसरा रदीफ और काफिए मे है 
बदसूरत हो गया है अब शीशा बहुत 
नया शीशा मंगाने से क्या फायदा 
झूठी शान दिखाने से क्या फायदा
अपनी ही फकीरी में मस्त रहता हो 
फिर ऐसा कोई संत कबीर न मिला 
प्यादे बहुत मिले वजीर न मिला
भूखे पेट मां ने सोने नहीं दिया 
खुद सो गई मुझे खिलाते खिलाते 
थक गई मां कहानी सुनाते सुनाते
---- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

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