मेरी नयी खोज
तीन मिसरी शायरी
तीन मिसरी शायरी
एक तिरोही ग़ज़ल
दिन उनके भी तो बदलेंगे कभी
लिए दिल में जो ये आस रहते हैं
अक्सर जो फटे लिबास रहते हैं
लिए दिल में जो ये आस रहते हैं
अक्सर जो फटे लिबास रहते हैं
हमाम में वह सब के सब नंगे हैँ
वोह भी जो बाहर ख़ास रहते हैं
जाने कैसे उनके एहसास रहते हैं
वोह भी जो बाहर ख़ास रहते हैं
जाने कैसे उनके एहसास रहते हैं
इश्क की आग में धुआं नहीं होता
अब ठिठरते हुए मथुमास रहते है
बहार आने पर भी उदास रहते हैं
अब ठिठरते हुए मथुमास रहते है
बहार आने पर भी उदास रहते हैं
तुम्हारे गम ने मारा जीते जी हमको
गम दिल के अब आस पास रहते हैं
लेते फिर भी मगर हम सांस रहते हैं
गम दिल के अब आस पास रहते हैं
लेते फिर भी मगर हम सांस रहते हैं
वो जब कभी लिबास नया पहनते हैं
कितने ही आईने उनके पास रहते हैं
खोए हुए उनके होशो हवास रहते हैं
कितने ही आईने उनके पास रहते हैं
खोए हुए उनके होशो हवास रहते हैं
----------डॉ सत्येन्द्र गुप्ता
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