Sunday, February 10, 2019



मेरी नयी खोज

तीन मिसरी शायरी 

  एक तिरोही ग़ज़ल
दिन उनके भी तो बदलेंगे कभी
लिए दिल में जो ये आस रहते हैं
अक्सर जो  फटे लिबास रहते हैं

हमाम में वह  सब के सब नंगे हैँ
वोह भी जो बाहर  ख़ास रहते हैं
जाने कैसे उनके एहसास रहते हैं

इश्क की आग में धुआं नहीं होता
अब ठिठरते हुए  मथुमास रहते है
बहार आने पर भी उदास रहते हैं

तुम्हारे गम ने मारा जीते जी हमको
गम दिल के अब आस पास रहते हैं
लेते फिर भी मगर हम सांस रहते हैं

वो जब कभी लिबास नया पहनते हैं
कितने ही आईने उनके पास रहते हैं
खोए हुए उनके होशो हवास रहते हैं
----------डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

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