Thursday, March 14, 2019

     

   तिरोहे तीन मिसरी शयरी
इश्क़ का अलग दस्तूर देखा
जिनको भूलाने में ज़माने लगे
मुझे देख वह मुस्कराने लगे
दिल से निकल गए थे जिनके
दिल में फिर वो घर बसाने लगे
हम दिल ही दिल शरमाने लगे
इश्क़ अदा है वफा है या दुआ
वो सबकी बिसात बिछाने लगे
हम भी खुद को समझाने लगे
कुछ सिफत थी उन आखों में
हम आईना उनको दिखाने लगे
और खुद से नजरें मिलाने लगे
देर आये दुरुस्त आये तो सही
हम भी दिल को समझाने लगे
संग साथ जिन्दगी बिताने लगे
मुकम्मिल है शायरी मेरी यह
तीन मिसरी शायरी बनाने लगे
तिरोहे ह्म्म गाकर सुनाने लगे
--- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

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