Sunday, February 10, 2019



महोदय 

मैं सत्येन्द्र गुप्ता नजीबाबाद जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ ।
कविता गीत छंद या गजल में 
अपनी बात कहने और उसे पूरा करने के लिए चार लाइनों यानि चार मिसरो की आवश्यकता होती है । मैंने अपनी बात कहने और पूरी करने के लिए चार नहीं तीन मिसरो का एक नया सिलसिला शुरू किया है । तीन मिसरो में उसकी सुन्दरता में चार चांद लग जाते हैं चौथे मिसरे की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है ।यह एक
नई विधा है जिसे मैंने नाम दिया है -- तिरोहे -- तीन मिसरी शायरी । इस विधा पर इन्डियन वर्चुअल युनिवर्सिटी  फॉर  पीस एंड एजुकेशन  बंगलौर ने मुझे डाक्टर ऑफ़  हिंदी साहित्य की मानिद उपाधि से नवाज़ा है - तिरोहे लिखते हुए मुझे असीम सुख का एहसास होता है ।तिरोहे वास्तव मेँ अतीत और वर्तमान की भावनात्मक यात्रा का अदभुत परिणाम है - एक अनूठा प्रयास है ।तिरोहे में पहला मिसरा स्वतंत्र है  दूसरा और तीसरा मिसरा रदीफ और काफिए मे है 

बदसूरत हो गया है अब शीशा बहुत
नया शीशा मंगाने से क्या फायदा
झूठी शान दिखाने से क्या फायदा

अपनी ही फ़क़ीरी  में मस्त रहता हो
फिर ऐसा कोई संत क़बीर  न मिला
प्यादे बहुत मिले कोई वज़ीर न मिला

भूखे पेट मां ने कभी सोने न दिया 
खुद सो गई मुझे खिलाते खिलाते
थक गई मां कहानी सुनाते सुनाते

           ---- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

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