Saturday, February 9, 2019



        तीन मिसरी शायरी

       तिरोही  ग़ज़ल 

दिन उनके भी तो बदलेंगे कभी ये
लिए दिल में वो यही आस रहते हैं [
वो जो अक़्सर फटे लिबास रहते हैं

हमाम में तो सारे के सारे  ही नंगे हैँ
वो भी जो बाहर सबसे ख़ास रहते हैं
जाने कैसे से उन में एहसास रहते हैं

इश्क़ की आग में धुआं नहीं उठता
रूठे रूठे से यह मधुमास रहते हैं
मुसलसल बादल भी बेआस रहते हैं

तुम्हारे गम ने मारा जीते जी हमको
 गम दिल  के ही आस पास रहते हैं
लेते फिर भी मगर हम सांस रहते हैं


वो जब कभी लिबास नया पहनते हैं
कितने ही आईने उनके पास होते हैं
बहके  से उनके होशो हवास रहते हैं

No comments:

Post a Comment