Sunday, December 23, 2018

तिरोहे ---- तीन मिसरी शायरी
वह जो पडोस में उम्र दराज रहता है
इश्क़ का उसने एक शज़र लगाया है
अंधेरे में उम्मीद का दिया जलाया है
जिसको आज तक भी समझ न पाए
रेशम पहन कर आज व इतराया है
जूनून ए इश्क़ सर पर उतर आया है
जब भी परखा मैंने चाल चलन अपना
चेहरे पर न हमने कोई धब्बा पाया है
आइने ने भी हमेशा साफ बतलाया है
लोग तो गिने गिनाए आए महफिल में
एक तू ही है जो बिना बुलाए आया है
आते ही तूने अपना जलवा दिखाया है
तोहमतें जिल्ल्तें और गलतफहमियां
वह सारे दरिया खंगाल कर आया है
दर्द को तो हमेशा गले से लगाया है
     शज़र  -   पेड़
-------- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

Thursday, December 20, 2018

तीन मिसरी शायरी ------
                        तिरोहे --

मुक्तक , रुबाई  , छंद सब ही चार लाइनों  के होते हैं कवि , गीतकार , ग़ज़लकार  भी अपनी बात को चार लाइनों में  यानि चार मिसरो में    ही पूरी तरह से कह पाते हैं। इधर मैंने तीन मिसरो  में अपनी बात को पूरी तरह से कहने का प्रयास किया है। तीन लाइनों में बात कहने और सुनने वाले को एक अतिरिक्त आनंद की प्राप्ति होती है। उदाहरण के       लिए ,
         पाँव डुबोये बैठे थे पानी में झील के 
         चांद ने देखा तो हद से गुज़र  गया 
         आसमां से उतरा पाँव में गिर गया 

          सच ढूंढ़ने निकला था 
           झूठ ने मुझे घेर लिया 
           सच ने मुंह फेर लिया 

           बहुत तक़लीफ़  सहकर पाला मां ने 
           मां की झुर्रियां बेटे की जवानी हो गई
           वक़्त बीतते बीतते मां कहानी हो गई 
           
          शान से ले  जाती है जिसको भी चाहे 
          दर पर खड़ी मौत फ़क़ीर नहीं होती 
          उसके पास कोई  तहरीर नहीं होती 

इन तीन लाइनों की शायरी पर मुझको इंडियन वर्चुअल यूनिवर्सिटी फॉर  पीस  एंड एजुकेशन ,  बंगलोर  द्वारा  मुझको डॉक्टर ऑफ़ हिंदी लिटरेचर की मानिद उपाधि से नवाज़ा गया।  यह मेरे द्वारा इज़ाद की गई बिलकुल एक नई विधा है जिसको मैंने नाम दिया है --    तिरोहे   --  तीन मिसरी शायरी।  इसमें पहला मिसरा स्वतंत्र है। दूसरा और तीसरा मिसरा क़ाफिये और रदीफ़ में है।  तीसरा मिसरा शेर की कैफियत में चार चाँद
लगा देता है उसको बुलंदियों तक पहुंचा देता है।  तीसरे मिसरे को मिसरा  ऐ ख़ास कहा है। 
                                        --------   डॉक्टर सत्येंद्र गुप्ता 
                                                                  -----  नज़ीबाबाद 

Monday, December 17, 2018


तिरोहे-- ----
-----------तीन मिसरी शायरी
बुढापा करेगा सजदा जब मेरी चौखट पर
उम्रे- दराज मुझे मेरी जवानी याद आएगी ...
नए लिबास में महक पुरानी याद आएगी



तरसा करेंगी बहार को जब भी कभी रातें
हवाओं की मुझे ये छेड़खानी याद आएगी
मौसम की भी ये रूत सुहानी याद आएगी


चेहरे पर होंगे जबभी कभी वक़्त के निशां
खूबसूरती हमें यह आसमानी याद आएगी
तब मुझको मेरी उम्र सियानी याद आएगी

बहुत पिया रवायतों का जहर हमने भी तो
रह रह कर वह मीरा दीवानी याद आएगी
उम्र भी ये मेरी दौरे सुल्तानी याद आएगी

घर में जब मैं और मेरा आईना रह जाएगा
उनकी दी हुई मुझे वो निशानी याद आएगी
बच्चों की सी वह सब शैतानी याद आएगी

कमर कमान थी उनकी, निशाना तीर था
उनकी वह मदमस्त जवानी याद आएगी
खौलते लहू की गर्म रवानी याद आएगी

मुद्दत हो गई यार को भी अब विदा किए
गज़ल उनकी गाई वो पुरानी याद आएगी
शबे हिज़्र उनकी ही मेज़बानी यादआएगी

उम्रे दराज़ - बुढापा
रिवायत - परम्परा
दौर ए सुल्तानी - खूबसूरत वक्त
रवानी -- बहाव
शबे हिज़्र - जुदाई की शाम
मेज़बानी - स्वागत करना

------- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

Wednesday, December 12, 2018

    तिरोहे--- तीन मिसरी शायरी
    इश्क की राह में खतरे ही खतरे हैं
    आदमी इस में पत्थर हो जाता है
    इश्क भी तो दर्दे जिगर हो जाता है
    ...
    दवा भी न तो कोई काम करती है
    दिल खामोश समन्दर हो जाता है
    आबे हयात भी जहर हो जाता है
    रंग उड जाते हैं तस्वीर के सारे ही
    हैरान देख के मुसव्विर हो जाता है
    दिल मुहब्तों की नजर हो जाता है
    यह सिफत भी आदमी में ही देखी है
    या तो इश्क़ में सिकन्दर हो जाता है
    दुआओं में उसकी असर हो जाता है
    या इश्क की नगरी में बावला होकर
    मुहब्बत के नाम पे अमर हो जाता है
    और फिर दास्तान ऐ शहर हो जाता है
    आबे हयात -जीवन अमृत
    मुसव्विर - चित्रकार
    सिफत -खूबी
    -------- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता


Tuesday, December 11, 2018

   तिरोहे ----
             तीन मिसरी शायरी 

इश्क़ की राह में खतरे ही खतरे हैं
आदमी खुद से बेख़बर हो जाता है
इश्क़ भी तो दर्दे जिगर हो जाता है

दम  घुटने  लगता है  महफ़िल  में
दिल खामोश समन्दर  हो जाता है
आबे- हयात भी ज़हर  हो जाता है

रंग उड़ जाते हैं तस्वीर के सारे ही
हैरान देखकर मुसव्विर हो जाता है
दिल  हसरतों की  क़ब्र हो जाता है

यह सिफ़त आदमी में  ही देखी  है
या तो फिर वो सिंकंदर हो जाता है
दुआओं में उसकी असर हो जाता है

या  इश्क़ में बावला रहता था कभी
मोहब्बत  में वही  अमर हो जाता है
या फिर क़िस्सा ऐ  शहर हो जाता है
 
       ------- डॉ  सत्येंद्र गुप्ता



Saturday, July 21, 2018



    तिरोहे ----
                   तीन मिसरी शायरी 
पहले तथा दूसरे मिसरे को प्रणाम करते हुए 
तीसरे मिसरे को मिसरा ए ख़ास से नवाज़ते हुए 
मैंने कुछ लिखा है ,

तरसेंगी बहार को जब कभी रातें 
हवाओं की यह छेड़खानी याद आएगी 
तब हमें यह रुत सुहानी याद आएगी 

चेहरे पर नक़्श होंगे वक़्त के निशां 
उम्र की यह मेहरबानी याद आएगी 
मुझको मेरी तब जवानी याद आएगी 

यह भीगी मस्त यह बेनाम सी खुशबु 
नए लिबास में महक़ पुरानी याद आएगी 
शबे हिज़्र यह मेहमानी याद आएगी 


देखके रुकना मुझे, शरमा के चले जाना 
सज़दे में  गर्दन यूं झुकानी याद आएगी 
उनकी दी हर एक निशानी याद आएगी 

घर पर मैं और आइना जब रह जायेगा 
मुझको  मेरी मीरा दीवानी याद आएगी 
राधा की भी  फिर कहानी याद आएगी 

शबे हिज़्र --जुदाई की 
रात , सज़दे --सर का झुकना 
          ------- सत्येंद्र गुप्ता 





Friday, May 25, 2018

              

        तीन लाइन की शायरी 

बुझ न सकी आग जो पानी में लगी थी 
हम बेवज़ह रुसवाइयों के नाम हो गए 
मिले भी नहीं मुफ्त में बदनाम हो गए 

ख़ुश्बू  देर तक़ कहीं टिक नहीं सकी
कोशिशें बहुत की सब नाकाम हो गए 
होने को  दुनिया के  सब काम हो गए 

इलाज़ के इंतज़ार में  जान निकल गई
हम जीते जी ज़िंदगी की शाम हो गए 
ज़िम्मे  हमारे बहुत सारे  काम हो गए 

वो गए तो साथ ले गए पहचान मेरी भी 
हम तो जैसे अब खाली ही ज़ाम हो गए 
तन्हाइयों के ही अब हम पैग़ाम हो गए

दो वाक़यात में ही  सिमटी  है ज़िंदगी
हम  कब पैदा हुए  कब तमाम हो गए
ता ज़िंदगी  हम दर्द का मुक़ाम हो गए 

         ------  सत्येंद्र गुप्ता 
             
   

Tuesday, May 15, 2018


सेवा में
           लिम्का बुक  रिकार्ड्स
 
महोदय ,
        मैंने  हिंदी  शायरी में एक नया प्रयास किया है।  दो मिसरो  के
 शेर को मैंने तीन लाइन में कहने का प्रयास किया है।   तीसरी लाइन
के जोड़ने से  शेर  का  वुजूद और बढ़गया।  तीसरी लाइन ने  दोनों
मिसरों   में चार चाँद  लगा  दिए। और उन्हें बुलंदियों तक  पहुंचा दिया।
मैंने इस विधा को नाम  दिया है तीन लाइन की शायरी
          उदहारण के लिए


    ---  तीन लाइन की शायरी   ---

परदेस चले गए थे कमाने के वास्ते 
लौट आये शक़्ल किसको  दिखाते 
अपनी बेबसी भी किसको दिखाते 

शान से ले जाती है जिसको भी चाहे 
दर पर खड़ी मौत फ़क़ीर नहीं होती 
उसके हाथ में भी  तहरीर नहीं होती 

तेरा हुस्न इस क़दर तराशा है उसने 
जैसे तुझको अपने लिए ही बनाया है
ग़ुरूर तुझमें क्या उसमे भी समाया है 

फ़ूल की तरह महकता है कागज़ 
जिस पर मैंने  तेरा नाम लिखा  है 
लगता है तेरी खुशबु का टुकड़ा है 

जिसने रास्ता दिया था बहने के वास्ते 
पानी ने काट दिया उस ही पत्थर को 
जाने क्या हो गया है इस मुक़द्दर को 

पाँव डुबोए बैठे थे  पानी में झील के 
चाँद देखकर उन्हें हद से गुज़र गया
आसमां से उतर कर पाँव पे गिर गया 

         मेरे पास ऐसी ऐसी तीन लाइन की लगभग 
हज़ार शायरी  हैं।  मेरी एक किताब भी इस विधा 
पर छप रही है।  इससे पहले मेरे नौ काव्य संग्रह 
भी छप चुके हैं। 
         ऊपर लिखी विधा अभी तक हिंदी साहित्य 
में प्रयोग नहीं की गई है। मैंने ही सब से पहले इस 
को लिखा है आपसे अनुरोध है  मेरी तीन लाइन की 
शायरी की इस  विधा को  लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड 
में स्थान दिलाकर  मुझे और साहित्य को गौरान्वित 
करेंगे ।  धन्यवाद ,
                                    सतेंद्र कुमार गुप्ता 
                              कृष्ण धाम ,कोटद्वार रोड 
                                  जाप्ता गंज। नजीबाबाद 
                               जिला -बिजनौर। उत्तर प्रदेश 


Friday, May 11, 2018

   तीन लाइन की शायरी
      मेरा नया प्रयास

फासला तो रहना चाहिए बीच में
आग से छेड़खानी अच्छी नहीं
हवा की तेज़ रवानी अच्छी नहीं

वह ख़फा हो जाएंगे देख लेना
बडो से बदजुबानी अच्छी नहीं
इतनी  बदगुमानी अच्छी  नहीं

तेरा ही नशा नहीं उतरता जिंदगी
जाने किस किस्म की तू शराब है
तुझ में भी बड़े गज़ब का  ताब है

फाका मस्ती में कट गई उम्र सारी
इतना भी ईमानदार नहीं हुआ जाता
टूटी किश्ती में सवार नहीं हुआ जाता

जब से तुम बस गए आकर यहाँ
यह मौहल्ला बड़ा अमीर हो गया
खूबसूरती की यह जागीर हो गया

ऊंघता रहा बिस्तर सो न सका
तेरी खुशबू नखरे दिखाती रही
तेरी याद रात भर ही आती रही

हजार आफतें लिपटती हैं कदमों से
फिर भी तो लाचार नहीं हुआ जाता
बीमार के साथ बीमार नहीं हुआ जाता
---------सत्येन्द्र गुप्ता


तीन मिसरो की शायरी मेरी एक नई  विधा है इसमें
दो मिसरो में मैंने एक मिसरा और जोड़ दिया जिससे
पहले दोनों मिसरो का वज़ूद और बढ़ गया और उनकी
क़ैफ़ियत बहुत ऊंचाई तक पहुँच गयी मैंने इस मिसरे
का नाम रखा है मिसरा ए ख़ास।
उदहारण के लिए 

आज तक वह आईना न बना 
मुझे मुझ से रूबरू करा देता
मुझको मेरी औकात बता देता

परदेस चले गए थे कमाने के वास्ते
लौट आए शक़्ल किसको दिखाते 
दस्ताने दर्द किस किसको सुनाते 

शान से ले जाती है जिसे भी चाहे
दर पर खड़ी मौत फकीर नहीं होती
उसके पास  कोई तहरीर नहीं होती

फूल की तरह महकता है कागज़
जिस पर मैंने तेरा नाम लिखा है
लगता है तेरी खुशबू का टुकड़ा है

तीन लाइन का ही खत था
सारी बातें जरूरी रह गईं
चाहतें सब अधूरी रह गईं
---------सत्येन्द्र गुप्ता
      कोट द्वार रोड नजीबाबाद
  मो  9837024900  

Tuesday, May 1, 2018

                
                                              तीन लाइन की शायरी 

           एक शेर में दो लाइन यानी दो मिसरे होते हैं। पहली लाइन मिसरा ए ऊला और दूसरी लाइन 
मिसरा ए सानी  कहलाती है। शेर अपने आप में पूरा तब तलक़ नहीं होता जब तक पहले मिसरे को 
दूसरे मिसरे का माक़ूल ज़वाब न मिले। यह भी कह सकते हैं की पहली लाइन मिसरा ए दावा होती 
है और दूसरी लाइन मिसरा ए दलील होती है। 
          मैंने एक नया प्रयास किया है।  मैंने इसमें एक लाइन और जोड़ने की कोशिश की है जिससे 
पहली दोनों लाइनों का वुज़ूद और बढ़ गया।  शेर की क़ैफ़ियत  में चार चाँद लग गए। तीसरी लाइन 
शेर को और बुलंदियों तक ले गई । मैंने इस विधा का नाम दिया है   --.  तीन लाइन की शायरी ---
उदहारण के लिए ,

                   
परदेस चले गए थे क़माने के वास्ते

लौट आये  शक़्ल  किसको दिखाते 
बेबसी अपनी किस किसको बताते 


शान से ले जाती है जिसको  भी चाहे 

दर पर खड़ी मौत  फ़क़ीर नहीं होती 
उसके हाथ में कोई तहरीर नहीं होती 


चंद लाइन का ही ख़त था 

बातें सारी ज़रूरी रह गई 
ख़्वाहिशें हीअधूरी रह गई 



तू मिसरा है जिस ग़ज़ल का ज़िंदगी 

उस  ग़ज़ल के अशआर हम भी हैं 
तेर इश्क़ के तो  हक़दार हम भी हैं 



उसकी शान में कुछ तोअता  कर

हर  चीज़  मिल जाती  है दुआ  से
मांग कर तो देख ले तू भी खुदा से  



उम्र दराज़ हो  जाता है बचपन

उसके ख़िलौने बदलते रहते हैं 
शब्दों के मायने बदलते रहते हैं


बदसूरत हो गया है चेहरा बहुत

नया शीशा मंगाने से क्या फायदा
झूठी शान दिखाने से क्या फायदा 

     तीसरी लाइन शेर की बुनियादी विशेषता को और मुखर कर रही है। शेर की क़ैफ़ियत को 
नया अंदाज़ दे रही है। आशा है आपको मेरा ये प्रयास ज़रूर पसंद आएगा।  धन्यवाद ,
                                                                             -----------   सत्येंद्र गुप्ता
 
                                                                                  मो -9837024900 

Wednesday, April 11, 2018

---- तेरी खुशबू -----
खुद को खुशबू का टुकड़ा बना रखा है
तेरी खुशबू ने सबको ही लुभा रखा है
क्या खूब तूने खुद को महका रखा है
हर इक साँस में ख़ुद को बसा रखा है
मेंरे दिल में भी रहती है हसरत बनकर
मैंने भी उसे अपना महबूब बना रखा है
हमें परवाह नहीं हम तो आदी हो गये
लेकिन इसने ऊधम बड़ा मचा रखा है
मैं मदहोश रहता हूँ तेरी ही खुशबू में
मैंने तेरी खुशबू से गौना करा रखा है

Monday, March 5, 2018

कुछ पैसे रखे थे हमने भी बचाकर
रोज उनमें कुछ न कुछ जोड़ा करते थे
बेहाल कर देता था कर्ज हमें भी
वायदा करके जब हम तोड़ा करते थे
चुप रहताथा मुझको वक़्त न मिला
तुम लम्बी लम्बी अपनी छोड़ा करते थे
तुमसे ही तो चलती है नब्ज़ हमारी
हम रिश्ता तुमसे अपना जोड़ा करते थे
दर्द से दिल की हो रही थी सगाई
बीत गई रात सारी नींद नहीं आई
चाँद भी छत पर खड़ा देख रहा था
चाँदनी भी थी शबनम में नहाई
संवारते हैं जिसे हम अपने हाथों से
वही दे जाता है हमको दर्दे जुदाई
रहिये ऐसी जगह जहां कोई नहीं हो
रास आने लगी हमको भी तन्हाई
थाम दी है हमने भी रफ़्तारे जिंदगी
अब महकती नहीं मेरी भी अंगडाई
रात ने जाना था वह तो चली ही गई
तकिये के नीचे छोड़ गई दर्दे परछाई

Monday, February 19, 2018

जिंदगी की किताब में क्या लिखा है
न ही तुझे पता है न ही मुझे पता है
सांसें भी हर वक़्त दम तोड़ रही हैं
जाने किस जुर्म की मिलती सजा है
बड़ी शान से रहता है दर्द दिल में
कहते हैं इसका रक्बा भी बड़ा है
ख़ुशी आई थी कुछ पलों के लिए
उसने मुंह दिखाई में लिया क्या है
उसकीआदत में शुमार है खामोशी
लगता है किसी बोझ तले दबा है
सबका अपना अपना ही हिसाब है
कहीं इब्दिता है तो कहीं इन्तिहा है
जिसने जाना था वह तो चला गया
अपनी मुहब्बत भी साथ ले गया है

Sunday, February 18, 2018

हमने हर गम तेरा दिल में छिपा रखा है
वरना इस दिल में बता और क्या रखा है
मेरी तन्हाई मुझसे बातें करती है अक्सर
क्या खूब तूने भी घर अपना सजा रखा है
नशा गज़ब का है नशीली आखों में तेरी
तूने आखों में कोई मैखाना छिपा रखा है
लाख देखा करे चाँद सितारे दुनिया तुझे
मेरी दुआ ने तुझे हर नज़र से बचा रखा है
साथ तेरे मैं, चलता भी तो चलता कैसे
तूने आसमान सारा सर पर उठा रखा है
लब खामोश हैं हो रही हैं नज़र से बातें
ये हुनर हमने तुझको भी सिखा रखा है
ख़ूबी हवा की थी वक़्त की थी या मेरी
हमने वीराने में अब चमन बसा रखा है
जाने कैसे लग गई थी लौ इश्क से हमें
अब हमने फ़कीरी में  मन लगा रखा है
-----सत्येन्द्र गुप्ता
जिंदगी की किताब में क्या लिखा है
न ही तुझे पता है न ही मुझे पता है
हर पल सांसें भी दम तोड़ती सी हैं
जाने किस जुर्म की मिल रही सजा है
दर्द की आहट है हर वक़्त दिल में
कहते हैं दर्द भी अभी नया नया है
उसकीआदत में शुमार है खामोशी
जाने किस बोझ से दबा हुआ सा है
सबका अपना अपना ही हिसाब है
कहीं इब्दिता है तो कहीं इन्तिहा है
जिसने जाना था वह तो चला गया
पता नहीं उसका मसअला क्या है
-------सत्येन्द्र गुप्ता

Friday, February 9, 2018

दिल जलाकर उजाला कर लेते हैं 
हम कमी में भी गुज़ारा कर लेते हैं 

घर में तो बैठी रहती हैं उदासियाँ 
खुश रहने का दिखावा कर लेते हैं 

अपनी तन्हाई का एहसास नहीं है 
दूसरों का गम तमाशा कर लेते हैं 

नफ़े नुक़सान की परवाह  न कर  
हम भी  जोड़  घटाना कर लेते हैं 

पडोसी  हमारा  चैन से  रह सके  
अपने दर्द में  इज़ाफ़ा कर लेते हैं

ज़िंदगी मेहरबान होती है जब भी 
उससे एक नया वादा कर लेते हैं 

बड़ी ख़ुशी पाने की उम्मीद में ही 
छोटी खुशी से किनारा कर लेते हैं 
       ------- सत्येंद्र गुप्ता 

Friday, January 19, 2018

यारियां निभाने का वक़्त न मिला
दूरियां घटाने का वक़्त न मिला।
भाग दौड़ में ही गुज़र गई ज़िंदगी
ज़रा भी सुस्ताने का वक़्त न मिला।
सफर जो भी कटना था कट ही गया
सिलसिले बनाने का वक़्त न मिला।
ज़रा सी बात पर ही जो रूठ गए थे
फ़िर उन्हें मनाने को वक़्त न मिला।
जिससे जीते हार भी उसी से मान ली
हाले दिल सुनाने का वक़्त न मिला।
दिल की दीवार पर सीलन है ग़म की
कभी धूप दिखाने का वक़्त न मिला।
घुट कर रह जाएंगी ये तन्हाइयां मेरी
ख़ुद को ही रिझाने का वक़्त न मिला।
कुछ तो ऐसा हो कि मैं ज़िंदा रह सकूं
मुक़द्दर आज़माने का वक़्त न मिला।
इस दिल का क्या करे कोई
तड़पा करे कि दवा करे कोई
वो देखकर के आहें भरते हैं
कैसे अंगडाई लिया करे कोई
ऐसा क्या है चाँदनी में बता
चाँद को ही तरसा करे कोई
फुरसत कहां है किसी को
हर वक्त ही मिला करे कोई
क्या रखा है जिंदगी में भी
मर मर कर जिया करे कोई
जो बात चिकनी चुपड़ी हो
वो हमसे न किया करे कोई
हवा तो सांय सांय करती है
बेवजह नहीं सुना करे कोई
हर दुआ कबूल नहीं होती
इतनी भी न दुआ करे कोई

Monday, January 15, 2018

खुशबू अच्छी थी अध खिले गुलाब की
कहानी इतनी सी है बस मेरे शबाब की
नींद उड़ जाती थी जब निगाहों से मेरी
तन्हाईयों  में जरुरत पड़ती थी  ख़्वाब की
ढूंढती है दुनिया जिसे इश्क के बाजार में
जरुरत नहीं मुझे वफ़ा की उस किताब की
रिवायतों का कत्ल हो गया था कल रात में
आवाज़ें आ रही थी कहीं से इन्कलाब की
रास्ता बदल लेते हैं वो मुझको देख कर
जरुरत पड़ने लगी है अब तो नकाब की
मेरे बयान में खुशबू है, रोशनी है दिल में
मैंने संभाल के रक्खी है परची हिसाब की
मैं भी किनारे लग गया था उस तूफान में
कहानी क्या बताऊँ तुम्हें उस सैलाब की
मुझको आता देख कर मैखाना भी बोला
तुम्हें भी लत लग गई यार अब शराब की
---------सत्येन्द्र गुप्ता

Sunday, January 7, 2018

वक़्त वह मौसम भी कितना सुहाना था
खुशियों ने बुना दिल का ताना बाना था
इश्क पर लिखी थी मैंने भी तो किताब
मेरी आशिकी का भी वो ही जमाना था
सारी मस्ती तेरी उन आँखों की ही थी
मेरे लिए तो जैसे वह ही मैखाना था
याद है अंगडाई लेने की वो अदा तेरी
तेरे पीछे आना तो वह इक बहाना था
जिसमें अपनी सूरत भी अजनबी लगे
तूने मुझे दिया घिसा आईना पुराना था
जिंदगी जाने क्या क्या रंग दिखाती है
लौट कर तूने भी तो वापस जाना था
सुना है आज वह जड़ से ही हिल गया
गिर गया शज़र ही वह जो पुराना था