Saturday, July 21, 2018



    तिरोहे ----
                   तीन मिसरी शायरी 
पहले तथा दूसरे मिसरे को प्रणाम करते हुए 
तीसरे मिसरे को मिसरा ए ख़ास से नवाज़ते हुए 
मैंने कुछ लिखा है ,

तरसेंगी बहार को जब कभी रातें 
हवाओं की यह छेड़खानी याद आएगी 
तब हमें यह रुत सुहानी याद आएगी 

चेहरे पर नक़्श होंगे वक़्त के निशां 
उम्र की यह मेहरबानी याद आएगी 
मुझको मेरी तब जवानी याद आएगी 

यह भीगी मस्त यह बेनाम सी खुशबु 
नए लिबास में महक़ पुरानी याद आएगी 
शबे हिज़्र यह मेहमानी याद आएगी 


देखके रुकना मुझे, शरमा के चले जाना 
सज़दे में  गर्दन यूं झुकानी याद आएगी 
उनकी दी हर एक निशानी याद आएगी 

घर पर मैं और आइना जब रह जायेगा 
मुझको  मेरी मीरा दीवानी याद आएगी 
राधा की भी  फिर कहानी याद आएगी 

शबे हिज़्र --जुदाई की 
रात , सज़दे --सर का झुकना 
          ------- सत्येंद्र गुप्ता 





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