तिरोहे-- ----
-----------तीन मिसरी शायरी
बुढापा करेगा सजदा जब मेरी चौखट पर
उम्रे- दराज मुझे मेरी जवानी याद आएगी ...
नए लिबास में महक पुरानी याद आएगी
-----------तीन मिसरी शायरी
बुढापा करेगा सजदा जब मेरी चौखट पर
उम्रे- दराज मुझे मेरी जवानी याद आएगी ...
नए लिबास में महक पुरानी याद आएगी
तरसा करेंगी बहार को जब भी कभी रातें
हवाओं की मुझे ये छेड़खानी याद आएगी
मौसम की भी ये रूत सुहानी याद आएगी
चेहरे पर होंगे जबभी कभी वक़्त के निशां
खूबसूरती हमें यह आसमानी याद आएगी
तब मुझको मेरी उम्र सियानी याद आएगी
बहुत पिया रवायतों का जहर हमने भी तो
रह रह कर वह मीरा दीवानी याद आएगी
उम्र भी ये मेरी दौरे सुल्तानी याद आएगी
घर में जब मैं और मेरा आईना रह जाएगा
उनकी दी हुई मुझे वो निशानी याद आएगी
बच्चों की सी वह सब शैतानी याद आएगी
कमर कमान थी उनकी, निशाना तीर था
उनकी वह मदमस्त जवानी याद आएगी
खौलते लहू की गर्म रवानी याद आएगी
मुद्दत हो गई यार को भी अब विदा किए
गज़ल उनकी गाई वो पुरानी याद आएगी
शबे हिज़्र उनकी ही मेज़बानी यादआएगी
उम्रे दराज़ - बुढापा
रिवायत - परम्परा
दौर ए सुल्तानी - खूबसूरत वक्त
रवानी -- बहाव
शबे हिज़्र - जुदाई की शाम
मेज़बानी - स्वागत करना
------- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता
हवाओं की मुझे ये छेड़खानी याद आएगी
मौसम की भी ये रूत सुहानी याद आएगी
चेहरे पर होंगे जबभी कभी वक़्त के निशां
खूबसूरती हमें यह आसमानी याद आएगी
तब मुझको मेरी उम्र सियानी याद आएगी
बहुत पिया रवायतों का जहर हमने भी तो
रह रह कर वह मीरा दीवानी याद आएगी
उम्र भी ये मेरी दौरे सुल्तानी याद आएगी
घर में जब मैं और मेरा आईना रह जाएगा
उनकी दी हुई मुझे वो निशानी याद आएगी
बच्चों की सी वह सब शैतानी याद आएगी
कमर कमान थी उनकी, निशाना तीर था
उनकी वह मदमस्त जवानी याद आएगी
खौलते लहू की गर्म रवानी याद आएगी
मुद्दत हो गई यार को भी अब विदा किए
गज़ल उनकी गाई वो पुरानी याद आएगी
शबे हिज़्र उनकी ही मेज़बानी यादआएगी
उम्रे दराज़ - बुढापा
रिवायत - परम्परा
दौर ए सुल्तानी - खूबसूरत वक्त
रवानी -- बहाव
शबे हिज़्र - जुदाई की शाम
मेज़बानी - स्वागत करना
------- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता
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