तीन लाइन की शायरी
बुझ न सकी आग जो पानी में लगी थी
हम बेवज़ह रुसवाइयों के नाम हो गए
मिले भी नहीं मुफ्त में बदनाम हो गए
ख़ुश्बू देर तक़ कहीं टिक नहीं सकी
कोशिशें बहुत की सब नाकाम हो गए
होने को दुनिया के सब काम हो गए
इलाज़ के इंतज़ार में जान निकल गई
हम जीते जी ज़िंदगी की शाम हो गए
ज़िम्मे हमारे बहुत सारे काम हो गए
वो गए तो साथ ले गए पहचान मेरी भी
हम तो जैसे अब खाली ही ज़ाम हो गए
तन्हाइयों के ही अब हम पैग़ाम हो गए
दो वाक़यात में ही सिमटी है ज़िंदगी
हम कब पैदा हुए कब तमाम हो गए
ता ज़िंदगी हम दर्द का मुक़ाम हो गए
------ सत्येंद्र गुप्ता
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