जिंदगी की किताब में क्या लिखा है
न ही तुझे पता है न ही मुझे पता है
न ही तुझे पता है न ही मुझे पता है
हर पल सांसें भी दम तोड़ती सी हैं
जाने किस जुर्म की मिल रही सजा है
जाने किस जुर्म की मिल रही सजा है
दर्द की आहट है हर वक़्त दिल में
कहते हैं दर्द भी अभी नया नया है
कहते हैं दर्द भी अभी नया नया है
उसकीआदत में शुमार है खामोशी
जाने किस बोझ से दबा हुआ सा है
जाने किस बोझ से दबा हुआ सा है
सबका अपना अपना ही हिसाब है
कहीं इब्दिता है तो कहीं इन्तिहा है
कहीं इब्दिता है तो कहीं इन्तिहा है
जिसने जाना था वह तो चला गया
पता नहीं उसका मसअला क्या है
-------सत्येन्द्र गुप्ता
पता नहीं उसका मसअला क्या है
-------सत्येन्द्र गुप्ता
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