Wednesday, December 12, 2018

    तिरोहे--- तीन मिसरी शायरी
    इश्क की राह में खतरे ही खतरे हैं
    आदमी इस में पत्थर हो जाता है
    इश्क भी तो दर्दे जिगर हो जाता है
    ...
    दवा भी न तो कोई काम करती है
    दिल खामोश समन्दर हो जाता है
    आबे हयात भी जहर हो जाता है
    रंग उड जाते हैं तस्वीर के सारे ही
    हैरान देख के मुसव्विर हो जाता है
    दिल मुहब्तों की नजर हो जाता है
    यह सिफत भी आदमी में ही देखी है
    या तो इश्क़ में सिकन्दर हो जाता है
    दुआओं में उसकी असर हो जाता है
    या इश्क की नगरी में बावला होकर
    मुहब्बत के नाम पे अमर हो जाता है
    और फिर दास्तान ऐ शहर हो जाता है
    आबे हयात -जीवन अमृत
    मुसव्विर - चित्रकार
    सिफत -खूबी
    -------- डॉ सत्येन्द्र गुप्ता


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