Monday, January 15, 2018

खुशबू अच्छी थी अध खिले गुलाब की
कहानी इतनी सी है बस मेरे शबाब की
नींद उड़ जाती थी जब निगाहों से मेरी
तन्हाईयों  में जरुरत पड़ती थी  ख़्वाब की
ढूंढती है दुनिया जिसे इश्क के बाजार में
जरुरत नहीं मुझे वफ़ा की उस किताब की
रिवायतों का कत्ल हो गया था कल रात में
आवाज़ें आ रही थी कहीं से इन्कलाब की
रास्ता बदल लेते हैं वो मुझको देख कर
जरुरत पड़ने लगी है अब तो नकाब की
मेरे बयान में खुशबू है, रोशनी है दिल में
मैंने संभाल के रक्खी है परची हिसाब की
मैं भी किनारे लग गया था उस तूफान में
कहानी क्या बताऊँ तुम्हें उस सैलाब की
मुझको आता देख कर मैखाना भी बोला
तुम्हें भी लत लग गई यार अब शराब की
---------सत्येन्द्र गुप्ता

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