Friday, February 9, 2018

दिल जलाकर उजाला कर लेते हैं 
हम कमी में भी गुज़ारा कर लेते हैं 

घर में तो बैठी रहती हैं उदासियाँ 
खुश रहने का दिखावा कर लेते हैं 

अपनी तन्हाई का एहसास नहीं है 
दूसरों का गम तमाशा कर लेते हैं 

नफ़े नुक़सान की परवाह  न कर  
हम भी  जोड़  घटाना कर लेते हैं 

पडोसी  हमारा  चैन से  रह सके  
अपने दर्द में  इज़ाफ़ा कर लेते हैं

ज़िंदगी मेहरबान होती है जब भी 
उससे एक नया वादा कर लेते हैं 

बड़ी ख़ुशी पाने की उम्मीद में ही 
छोटी खुशी से किनारा कर लेते हैं 
       ------- सत्येंद्र गुप्ता 

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