Wednesday, April 27, 2011

है अपनी ज़मीं अपना आसमां
दोनों ही मुझ पर हैं मेहरबां।
भरोसा खुद पर है मुझे इतना
पूरे होंगे अपने सारे अरमां।
काम करते हैं मेहनत से हम
नहीं उड़ाते खाके-बयाबां।
बोते हैं फसलें सदा ही शादाब
हम नहीं हैं हल्क़-ऐ-बाजीगरां।
सारा जहां हमारा है कहते हैं हम
बदल कर रहेंगे तस्वीरे-जहां।
याद करेगा हमें जमाना सदा
छोड़ कर जायेंगे हम ऐसे निशां।

खाक-ऐ- बयाबां --वीराने की धूल
शादाब -- हरी भरी
हल्क़-ऐ- बाजीगरां --तमाशा दिखाने
वालों के झुण्ड








खिंची लकीरें रेत पर मिटती चली गई
तीरगी उजालों में सिमटती चली गई।
बात कल और थी है आज कुछ और
जिंदगी इसी तरह कटती चली गई।
जरूरतें हथेली पर बिखरी नहीं लगती
सब महंगाई के गले लगती चली गई।
कन्धा कोई न मिला क़द उंचा करने को
बड़ा दिखने की आरज़ू घटती चली गई।
एक रिश्ता था दोनों के बीच कल तलक
दोस्ती दुश्मनी में सिमटती चली गई।
फायदा किसी बात का अब नहीं रहा
हादसों से जिंदगी बिखरती चली गई।
अपने वजूद में सबको सिमटा देखकर
मजबूरी मुफिलसी में सिमटती चली गई।

Monday, April 25, 2011

उसके भीतर जो जहाँ था वीरान था
इस बात से मगर वह अनजान था।
नशा नहीं मस्ती नहीं न थी ख्वाहिशें
जाने किस किस्म का सारा सामान था।
राहगीरों को रोकता था छांह देने को
कभी उस शज़र को खुद पे गुमान था।
खंडहर बनके इतरा रहा है आज भी
कभी मकान जो बड़ा आलीशान था।
धूप कहीं छांह सर्दी गर्मी कहीं बारिश
दिखने में तो वही एक आसमान था।
टुकड़ों में सिमटकर रह गया है अब
कितना बड़ा वह एक खानदान था।
चेहरा बोलता था बात कहने के बाद
कभी अपने सलीके पर उसे गुमान था।
छिपाकर रखा था उसने सबसे मगर
उसके भीतर जो एक बड़ा आसमान था।
फलसफा जिंदगी का बदलता रहा
मैं गम कभी खुशी से बहलता रहा।
जाने खुशबु कहाँ से आकर बस गई
संग तुम्हारे जिस्म मेरा महकता रहा।
दर्द थमा रहा जब तक रहे पास तुम
बस तुम्हे देखकर दिल धडकता रहा।
बरसों अनजाना रहा यारों के बीच
मैं तपती धूप में मगर चलता रहा।
जिस जगह दुःख मचलता है बहुत
सुख भी सदा वहीँ पर बरसता रहा।
आज की रात करो न बहाना कोई
आज रात मेरा नहीं है ठिकाना कोई।
देख कर ही तुझे तसल्ली पा लेंगे
जरूरी नहीं है गले से लगाना कोई।
तेरे मिलने का एक लम्हा ही काफी है
नहीं चाहिए फिर मुझे जमाना कोई।
तितलियों पर भी पाबंदियां हैं लगी
नामुमकिन है खुशबु चुराना कोई।
जख्म पुराने हैं तकलीफ भी देंगे ही
जरूरी नहीं है मरहम लगाना कोई।
जिंदगी बीत गई तब जाकर ये जाना
ऐसे ही नहीं मिलता खज़ाना कोई।
ग़ज़ल खुद शमा सी पिघलती रही
दिल भूल गया सुनना तराना कोई।
नेकियाँ करके ही सोच लेते हैं हम
नहीं मुश्किल मुल्के-अदम जाना कोई।


Friday, April 22, 2011

कहा जाता है कि बांस में जब फूल आता है तो कहर आता है ,सूखा पड़ता है ,अकाल पड़ता है ।बांस पर अगर फूल आ जाए तो बांस बांस बन ने से पहले ही मुरझा जाता है।अभी अखबार हिंदुस्तान में पढ़ा था कि इस वर्ष बांस में फूल खिले हैं,
इसी पर लिखा है,
बांस पर फूल आने कि खबर है
लगता है आने वाला कोई कहर है।
लोगो कि दिलचस्पियाँ बढ़ गई हैं
कुछ नया अजूबा होने कि खबर है।
गठरी सँभालने से होगा क्या अगर
वर्क वर्क पे लिखा होना दर बदर है।
खुदा महफूज़ रखना सबका मुकद्दर
बिखरा हुआ सबका सामाने-सफ़र है।
नींद का सिलसिला ख्वाब हो गया
जब से जाना नज़दीक वक्ते-सफ़र है।
समय गुजरा तो बात साफ़ यह हुई
किस्सा यह सारा ही बे असर है।

वक़्त बेवक्त आंसू मत बहाया कर
खुद को कभी इतना मत सताया कर।
खज़ाना आंसुओं का अनमोल है बड़ा
पलकों का नमक अपनी मत जाया कर।
जिंदगी की चादर में तो सबकी छेद है
खुद को दिवालिया तू मत बताया कर।
जमाने का काम तो बस हवा देना है
अपने जख्म किसी को मत दिखाया कर।
आरज़ू सब पूरी नहीं होती किसी की
हर वक़्त रंगीन सपने मत सजाया कर।
कोई न जान पायेगा दिल की लगी तेरी
सब के सामने तू बस मुस्कराया कर।
खबर सुनकर फिर रुका नहीं जाता
उल्टा जूता पहन कर चला नहीं जाता।
अपने ही घर में लगा करता है मन
किसी के घर महीनो रहा नहीं जाता।
शब् गा उठी महकते ही रात रानी के
दिल के काबू में अब रहा नहीं जाता।
चाँद सितारे साथ रहने लगे जब से
तन्हाई में तन्हा अब रहा नहीं जाता।
जरूरत न थी नए को पुराना कह दिया
पुराने को मगर नया कहा नहीं जाता।
दामन तार तार होने को है तैयार पर
एहसान किसी का लिया नहीं जाता।
बिक न सका वह नीलाम हो गया
कितना ऊँचा उसका दाम हो गया।
बिक जाता इज्ज़त पर्दे में रह जाती
नीलाम होते ही वह बदनाम हो गया।
मुफलिसी में था तो दबा ढका था
गली गली चर्चा अब आम हो गया।
राजा बना रहता था दिल का अपने
किस्मत है अब गुलाम हो गया।
कहानी गरीब की यह नई नहीं है
पल पल कटता तमाम हो गया।


आग को कभी ऐसी चिंगारी मत देना
भडके शोलों को जिंदगानी मत देना।
रौशनी दे दे तुम्हारे काम आ जाये
इससे आगे उसे आज़ादी मत देना।
नहीं तो कहर ढा देगी तेरे ही सामने
उसे कभी इतनी खुद्दारी मत देना।
आग की तरह ही है यह दुनिया भी
इसको अपनी जानकारी मत देना।
पूरी तरह तुझे बदनाम कर देगी
इसे अपनी तू कहानी मत देना।
शिद्दत से जला डालेगी तुझे यह
बस अपनी आतिशबाजी मत देना।

Wednesday, April 20, 2011

अकेला ही मैं कारवां बन गया
किसी के दिल का जहाँ बन गया।
अब न रहा दिल में भी गुबार
पत्ता पत्ता मेहरबां बन गया।
मुतमईन है एक शज़र बहुत ही
छाहं देकर वो सायबां बन गया।
भाई को छत देने की जुगत में
सहन में नया आसमां बन गया।
टुकड़ों टुकड़ों में बंट गई दुनिया
ठिकाना सबका आसमां बन गया।
जिंदगी अब नहीं रही महफूज़
सफ़र कितना रायगां बन गया।
बला ज़ब से गुजर गई सर से
चप्पा चप्पा गुलिस्तां बन गया।
रायगां - बेकार
खुद ही लड़ते हैं खुद सुलह करते हैं
वो प्यार भी दीवानों की तरह करते हैं।
खुशनुमा होते हैं लफ्ज़ उनके बहुत
जब भी कहते हैं बड़ी जिरह करते हैं।
नजाकत वक़्त की भी नहीं जानते
कुछ लोग बातें ही बेवजह करते हैं।
फितरतन बुजदिल होते हैं शख्श वो
अक्सर जो बहुत ही कलह करते हैं।

किसको देखूं मैं न देखूं किसको
बेमतलब मुझ पे निगह करते हैं।
मुझसे न पूछा हाल मेरे होने का
ख्वाहिशें मुझसे बहुत वह करते हैं।
कभी इस पार आये गये उधर कभी

रहने की तमन्ना हर जगह करते हैं।
सहर तो होती है वक़्त पर रोज़ ही
सितारे कहते हैं सुबह वह करते हैं।







Monday, April 18, 2011

ईमारत नीव पर ही खड़ी होती है- मुहब्बत दिल में पलके बड़ी होती है। एक नहीं दो नहीं बेतरतीब होती हैं - उम्मीद की हर दिल में झड़ी होती है। सिर्फ पिस कर रंग नहीं लाती हिना - पहरों पिसती है जिद्दी बड़ी होती है। सजती है नर्म हथेली पर ज्यों ही - रच कर के फिर खुश बड़ी होती है। तहरीरों के नश्तर चुभते हैं तो -जिगर में पीर बड़ी होती है। शहर का दस्तूर अलग होता है-दिलों में सबके दूरी बड़ी होती है। चंद लम्हों में टूट जाता है इन्सां-दिल की लगी अजीब बड़ी होती है। अपनी हस्ती हवा में खो देता है- दर पे सामने जब मौत खड़ी होती है।
मेरी वफ़ा को बेवफा मत कहना- इस दिल को भी बुरा मत कहना। लोग कहते हैं कहा करें कुछ भी - तुम प्यार को खता मत कहना। रात मसरूफियत में ही कटी थी - तुम उसको रतजगा मत कहना। आंसू गिरा तो आवाज़ न होगी - किसी अश्क को मेरा मत कहना। मेरे लहजे में तक्क्लुफ़ न रहा - तुम मुझे दिवालिया मत कहना।

Sunday, April 10, 2011

इससे पहले कि टूट ये जाए - मेरा दिल कोई चुरा ले जाए। कब से नींद मुझसे रूठी है- आँखों को भी सपना दे जाए। गम की जिसमे धार न हो - बहता हुआ ऐसा दरिया दे जाए। अपना रकीब बना कर -मेरी जीने की तमन्ना ले जाए। शामे महफ़िल में बुला कर मुझे - एक नया सिलसिला दे जाए। इसका भी गम नहीं होगा अगर - वो उम्र भर की सजा दे जाए।
सुनाई जा रही जो तेरी जुबानी थी - किसी और की नहीं मेरी कहानी थी। खंडहर बता रहे हैं ईमारत बुलंद थी- बुढ़ापा भी कभी किसी की जवानी थी। खुश है नदी पार कर कागज़ की नाव से- कुछ देर पहले तो दिल में परेशानी थी। तेज़ हो गया फिजा में तूफ़ान हंसी का- अभी अभी आँखों में सबके हैरानी थी। परेशानी में रहने लगा शहर हर वक़्त - कभी महक उसकी बड़ी जाफरानी थी। तस्वीर पर पड़ गया हार उसकी भी- बुलंद जिसके दिल की सुल्तानी थी।
दिखने में तो शांत बड़ा लगता है- अन्दर ही अंदर मचलता रहता है। समन्दर की दोस्ती है तस्करों से - इसलिए वह सहमा सा लगता है। नीला बना हुआ लगता है दिन भर - पूनम की चांदनी में बहका लगता है। शुरह्त की बुलंदी पल का तमाशा है- बाद उसके आदमी बिखरा लगता है। जी भर के कभी उसे देख नहीं पाते- उसे नज़र न लग जाए डर लगता है।
अभी सीखने को इल्म बहुत बाकी है - अभी आँखों में भरम बहुत बाकी है। अभी जीत का जश्न मत मनाओ - अभी सीने को जख्म बहुत बाकी है। नया कुछ लेकर करेंगे अभी क्या- अभी पुराना गम बहुत बाकी है। मन आज फिर से उदास है बहुत - अभी यादों में दम बहुत बाकी है। बहुत ही जल्द उजड़ गई बज्म - कहने को अभी नज़्म बहुत बाकी है।
हर चीज़ मिलती है दुआ से- मांग कर तो देख ले खुदा से। मंज़र भी सजा हुआ है मगर- लग रहे हो तुम क्यों खफा से। आइना मुस्कराना न भूलता- देख लेते तुम अगर अदा से। सूरज सोच करके परेशान है- आग नहीं बरसती घटा से। मेरी आदत में शुमार है ये भी -तकता रहता हूँ तुझे सदा से।
हर पल में प्यार है हर पल ख़ुशी है- खो दी तो यादें हैं जी ली जो जिंदगी है। फिक्र के दरिया ने हर दम बहना है- सोचो तो मुश्किल है नहीं तो मस्ती है। दस्तक भी मौत ने देनी दर दर है -हर चीज़ महंगी है जिंदगी सस्ती है। काफिला बिखरना है बिखरेगा ही- आँखों में क्यों वीरानी झलकती है। कोई बताये मुझे अब मैं करूं क्या -जख्म पर दवा काम नहीं करती है।
ऐसे मिला करो की लोग पूछते रहें- मिलने की आरज़ू तुमसे करते रहें। ऐसे रहा करो की जमाना मिसाल दे- महफ़िल में रहने को तेरी तरसते रहें। बढ़ता रहे क़द सदा हौसले के संग- जमीन पे रहके आसमा पे चलते रहे। दिल से भी तहजीब मरे नहीं कभी- तेरी सीरत पर लोग नाज़ करते रहें। सच्चाई का दामन न छूटे कभी भी -कितने ही रोड़े राह में मिलते रहें।

Saturday, April 2, 2011

समंदर कभी दर-बदर नहीं होता- मेरे फन का अब ज़िक्र नहीं होता। जितने भी सजदे करने हैं करो -आदमी खुदा मगर नहीं होता। कभी खेले थे नाव से कागज़ की -ऐसा खेलना उम्र भर नहीं होता। भटकता फिरता है गली में तन्हा -अपना जिस का घर नहीं होता। खज़ाना चाहे कितना भी मिल जाये- उस से हर दिल मुअत्तर नहीं होता। पास तुम हो तो पास गम नहीं होता -मुहब्बत को भी फिर सब्र नहीं होता। होता रहे दुनिया में जो भी होना है- हम उस मकाम पे हैं असर नहीं होता।