जिसको भी मैंने हवा से बचाया
उस चराग़ ने ही घर मेरा जलाया।
हमसफ़र बनकर साथ चला जो
तन्हाई का उसने ही फ़ायदा उठाया।
सूने दालान हैं खिड़कियां वीरान
घर का मेरे यह क्या हाल बनाया।
हज़ार खिड़कियां थी दिल में मेरे
किसी को भी मैं नहीं खोल पाया।
ज़ख्म तूने मुझको दिए ही ऐसे
वक़्त ने भी न उन पे मरहम लगाया।
तीर की माफ़िक़ चुभी अंगुली वह
किसी ने ज़ख्म जब मेरा सहलाया।
मेरे ज़ख्मों की महक कहती है
तू भी तो मुझ को नहीं भूल पाया।
क़द से बाहर निकल आया था मैं
ख़ुद से ही न बाहर न निकल पाया।
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