हमें ज़िंदगी से हमेशा शिक़ायत ही रही
क़दमों से लिपटी हमेशा आफ़त ही रही।
कभी हंसाना कभी हंसाकर के रुलाना
ज़िंदगी तेरी भी तो यह रिवायत ही रही।
गिनाते रहे ख़ामियां हम अपने क़ुसूर की
हमारे दिल में तो हमेशा शराफ़त ही रही।
हमने अपने ग़मों का दिखावा नहीं किया
सर पर तो नाचती सदा क़यामत ही रही।
वह दर्द है गले से भी फिर लिपटेगा वो तो
ज़ख्म देना उस की तो ख़ासियत ही रही।
ज़माना भी बग़ावत करता ही रह गया
दिलों में मगर मुहब्बत सलामत ही रही।
ज़िंदगी ने तो बहुत कुछ दिया है हम को
उसकी तो हम पर सदा इनायत ही रही।
जाने कितनी ज़ालिम शय है ये शराब भी
कड़वी बहुत है पीने की मगर चाहत ही रही।
शराब छोड़ने चले थे वो जहां ही छोड़ गए
इसकी वज़ह भी तो उनकी आदत ही रही।
अपना तो दुआओं से भी काम चल जाता
अब दिल में बाक़ी न कोई चाहत ही रही।
क़दमों से लिपटी हमेशा आफ़त ही रही।
कभी हंसाना कभी हंसाकर के रुलाना
ज़िंदगी तेरी भी तो यह रिवायत ही रही।
गिनाते रहे ख़ामियां हम अपने क़ुसूर की
हमारे दिल में तो हमेशा शराफ़त ही रही।
हमने अपने ग़मों का दिखावा नहीं किया
सर पर तो नाचती सदा क़यामत ही रही।
वह दर्द है गले से भी फिर लिपटेगा वो तो
ज़ख्म देना उस की तो ख़ासियत ही रही।
ज़माना भी बग़ावत करता ही रह गया
दिलों में मगर मुहब्बत सलामत ही रही।
ज़िंदगी ने तो बहुत कुछ दिया है हम को
उसकी तो हम पर सदा इनायत ही रही।
जाने कितनी ज़ालिम शय है ये शराब भी
कड़वी बहुत है पीने की मगर चाहत ही रही।
शराब छोड़ने चले थे वो जहां ही छोड़ गए
इसकी वज़ह भी तो उनकी आदत ही रही।
अपना तो दुआओं से भी काम चल जाता
अब दिल में बाक़ी न कोई चाहत ही रही।
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