Saturday, March 31, 2012

आईने ने तो बहुत ख़ूबसूरत लगने की गवाही दी थी
कोई मुझे देखा करे, मैंने किसी को यह हक न दिया।
वक्त को भी दर्दे-तन्हाई का कभी एहसास नहीं हुआ
मेरे गरूर ने मुझे ,किसी आँख में रहने तक न दिया।
रह रह कर कईं सिलसिले याद आ रहे हैं आज
काश ! भूले से ही किसी महफ़िल में रह लिए होते
आज वक्त ही वक्त है ,काटे से भी नहीं कटता
मुहलत मिली होती तो, अपनों के गले लग गये होते।



Thursday, March 29, 2012

झुर्रियों पर सिंगार अच्छा नहीं लगता
हर वक़्त त्यौहार अच्छा नहीं लगता।
रूठना तो बड़ा अच्छा लगता है उनका
गुस्सा बार बार का अच्छा नहीं लगता।
तुम जरूरत हो हमारी यह माना हमने
पर लबों पे इसरार अच्छा नहीं लगता।
खनक चूड़ियों की बड़ी अच्छी लगती है
उस वक्त सितार अच्छा नहीं लगता।
तस्वीर पर तुम्हारी होंठ रख दिएमैंने
बेमतलब इंतज़ार अच्छा नहीं लगता।
मैख़ाने में तेरे साक़ी आ ही गये हैं हम
अब करना इन्कार अच्छा नहीं लगता।



Monday, March 26, 2012

------- गरीबी की रेखा -----
उस चेहरे की नाउम्मीदी को देखिये
गरीब की खाली थाली को देखिये।
गरीबी रेखा से नहीं बदलती जिंदगी
गरीब के चश्मे से गरीबी को देखिये।
गरीब की किसी बसाहट में जाकर
बेबस मां की बदनसीबी को देखिये।
जिगर के टुकड़े को रोटी न दे सकी
बाँहे पसारती भुखमरी को देखिये।
गरीब का बच्चा भी गरीब बनेगा
गरीबी नहीं उस मजबूरी को देखिये।
लक्ष्मण रेखा की तरह है गरीबी रेखा
इसके नीचे की लाचारी को देखिये।
सरकार वादे करके पल्ला झाड़ लेती है
गरीबी पर होती राजनीति को देखिये।




Saturday, March 24, 2012

सिंगार करके ज्यादा मासूम लगने लगे
शर्म ह्या के गहने उन पे सजने लगे।
देख कर के ताव, हुस्ने-महताब का
तुनक मिजाज़ शीशे भी चटकने लगे।

भीड़ में खो गये थे जो ,वो एहसास
फिर से उनके जादू से मचलने लगे।
ता-उम्र जिस प्यार को तरस रहे थे
इतराकर उस प्यार में उछलने लगे।
सिफ़त जाने क्या थी उन आँखों में
नशा इस क़दर चढ़ा, बहकने लगे।




Wednesday, March 21, 2012

तलवार घिसते घिसते छुरी रह गई
बात जो कहनी थी अधूरी रह गई।
तुम सा कोई भी नहीं था शहर में
अब तो यहाँ बस मजबूरी रह गई।
मैंने चिराग़ जलाये सबके वास्ते
खुद की राह मेरी अँधेरी रह गई।
तन्हा दिल भला करता क्या क्या
हंसने की चाह भी अधूरी रह गई।
पहनते ही फट गया पैरहन नया
चमकती हुई पुरानी ज़री रह गई।
तुम्हारे संग चीज़ें अच्छी लगती थी
मन में वही परतें सुनहरी रह गई।


Monday, March 19, 2012

दिल में जब से दर्द की शिद्दत नहीं रही
दर्द को दर्द कहने की हिम्मत नहीं रही।
इसी को ओढ़ लेंगे जो नीचे बिछी थी
हम को आसमां की जरूरत नहीं रही।
वो आयें न आयें अब फर्क नहीं पड़ता
दिल के कोने में भी वहशत नहीं रही।
तुम ही थे जिस को ख़ुदा से माँगा था
तुमसे भी मिलने की फुरसत नहीं रही।
शबाब का मौसम कभी का गुज़र गया
अब रोशनी को हमारी आदत नहीं रही।
शिकायत जमाने से भला क्या करें अब
फ़िज़ा में वो शौक वो निस्बत नहीं रही।

Saturday, March 17, 2012

कुछ तो है जिसकी परदे दारी है
दिल में सबके बड़ी ही बेकरारी है।
जताना नहीं उसे छिपाना आता है
उसके पास सियासत की पिटारी है।
हर वक्त नए पैंतरे अपनाता है वो
हर लम्हा आदमी में नई होशियारी है।
खून के रिश्ते सब पैसों में बिक गये
फटे हुए रिश्तों पर अब पैवंदकारी है।

क़दम क़दम पर मसले ही मसले हैं
ज़िंदगी की मुसलसल जंग जारी है।
दिल के अन्दर तक देख नहीं सकता
आईने की भी अपनी ही लाचारी है
अखब़ार ही आज सब से सस्ता है
क़ब्ज़े में उसके मगर दुनिया सारी है।




Friday, March 9, 2012

आँखों में बड़ी मजबूरियाँ थी
सूखे लबों पर ख़ामोशियाँ थी।
हसरतें दिल में उबल रही थी
चेहरे पर बड़ी ही बैचैनियाँ थी।
तबस्सुम जानलेवा था उनका
सफ़र में मगर सिसकियाँ थी।
नज़र के दायरे में आ गईं थी
गलतफहमियां जो दरमियाँ थी।
खुल तो जाते हम खुलते खुलते
मगर चाहतों पर सख्तियाँ थी।
इंतज़ार उनके आने का बड़ा था
भले ही दिल में मायूसियाँ थी।
दाग़ आईने में भी उभर रहे थे
मिली मुझे इतनी रुस्वाइयाँ थी।

Wednesday, March 7, 2012

दम ख़म जो हमने दिखाया न होता
जश्न तुमने ऐसा मनाया न होता।
बोली तुम्हारी ऊंची कैसे लगती
अगर दाम हमने लगाया न होता।
घरों से अँधेरे भी कभी न निकलते
सूरज ने मुंह जो दिखाया न होता।
हवा के मिजाज़ का पता न चलता
मुकद्दर ने अगर आजमाया न होता।
ख़्वाब ग़ाह का जाने हश्र क्या होता
अगर ख़्वाब कोई सजाया न होता।
मैकदे में, मैं लडखडाता ही रहता
जो आँखों से तुमने पिलाया न होता।
शाम के वक्त तो मैं भी बहल जाता
शाम ने अगर दिल दुखाया न होता।













गुलाल मेरे चेहरे पर अगर लगा देते
कमाल तुम्हे अपना हम भी दिखा देते।
होली आ जाती जो हमारे मुहल्ले में
रंगों से उसको बेमिसाल बना देते।
जो बावले न होते इंतज़ार में तुम्हारे
होली में हम तो धमाल मचा देते।
इठलाती हुई अगर तुम दिख जाती
तीर कामदेव के हम भी चला देते।
गुलाल मलमल कर लगाते गालों पर
चेहरे को तुम्हारे हम रंगीन बना देते।
होली के दिन गले लग कर तुम्हारे
दिल का अपने तुमको हाल बता देते।

Saturday, March 3, 2012

सजी हुई है रंगोली गली गली बरसाने में
धूम मची है चारो तरफ होली की बरसाने में।
उमड़ रहा है रसिकों का मेला भी बरसाने में
गोपियाँ अपने कान्हां को बुला रही बरसाने में।
किये हुए सिंगार सोलह, बनी ठनी हर सखी
खेल रही सखों से लठमार होली बरसाने में।
अबके बरस खेलने को होली मैं भी लट्ठमार
एक नया लट्ठ लेकर आ पहुँची बरसाने में।
देख रंग बिरंगी छटा आँखें मेरी चुन्धियाई
राधा संग खेल रहे कान्हां होली बरसाने में।
देख के ऐसी सुन्दर होली दिल में है ये आया
हर जन्म में मैं दुल्हन बन आउंगी बरसाने में।

Thursday, March 1, 2012

कसूर जो हों हमारे हिसाब लिख दो
गम हमारे नाम बेहिसाब लिख दो
शिफ़ा जिसने बख्शी है हंसने की हमें
अहसानों पर उसके किताब लिख दो।
मेरा तुम्हारा रिश्ता बेनाम तो नहीं
ज़माने को इसका जवाब लिख दो।
कुछ न बोलो कुछ भी न बताओ
आँखों में अपना ख्वाब लिख दो।
उसूलों पर कायम रह सकें दोनों
तहरीर एक ऐसी ज़नाब लिख दो।
बात ख़ुश्बू की तरह फ़ैल जाएगी
लफ्ज़ मेरे होठों पर गुलाब लिख दो।








उम्मीद की लौ तो जल रही है
ख्वाहिश दिल में नई पल रही है।
ख़ूबसूरत ग़ज़ल सुनने के लिए
शमां धीरे धीरे पिघल रही है।
मस्त निगाहों से न देखो हमें
वहशत सी दिल में पल रही है।
सुन लो, कि शाम भी ढल गई
तबियत पीने को मचल रही है।
किसने बिखरा दिए हैं जुगनू
सिंगार शब् अपना बदल रही है।
छोड़ के अदावत यारी पकड़ ले
मुहब्बत भी करवट बदल रही है।