कहीं बारिश तो कहीं गर्दो ग़ुबार था
कहीं फ़िज़ा में भी छाया ख़ुमार था।
अभी खिला था मुरझा भी गया वो
फूल ख़ुद पर ही बहुत शर्मसार था।
वो आइना ही टूट गया आज तो
बदौलत जिसकी मुझमें निखार था।
जिससे पूछो वो तो कहता है यही
बेवफ़ा न था वो तलाशे रोज़गार था।
एक ही घूँट में खुल गए राज़ सारे
ख़त्म हुआ जिस पे जो ऐतबार था।
शुक्रिया कैसे अदा करूं चाँद तेरा मैं
एक तू ही तो मेरे गम में शुमार था।
कहीं फ़िज़ा में भी छाया ख़ुमार था।
अभी खिला था मुरझा भी गया वो
फूल ख़ुद पर ही बहुत शर्मसार था।
वो आइना ही टूट गया आज तो
बदौलत जिसकी मुझमें निखार था।
जिससे पूछो वो तो कहता है यही
बेवफ़ा न था वो तलाशे रोज़गार था।
एक ही घूँट में खुल गए राज़ सारे
ख़त्म हुआ जिस पे जो ऐतबार था।
शुक्रिया कैसे अदा करूं चाँद तेरा मैं
एक तू ही तो मेरे गम में शुमार था।
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