Saturday, June 20, 2015

हर ख़ुशी नहीं मिलती किसी को ज़माने में 
उम्र गुज़र जाती है खुद को ही आज़माने में।
दरवाज़ा बंद रहने लगा  उनके घर का अब 
हिचक सी होने लगी घर उनके जाने आने में। 
तन्हाई  क़ुरेद देती है मेरे ज़ख्मों को अक्सर 
वक़्त बहुत लगता है फिर उनको सहलाने में।
रहज़न बनकर  दोस्त  अब क्या लूटेगा हमें 
गम भी हमने रख दिए, दिल के तहख़ाने में। 
सुराख़ मेरे दिल में भी तो हो गया था मगर 
वक़्त अभी बचा था लौटकर के मेरे जाने में। 
ख़ुशी वफ़ा मुहब्बत सुक़ून मर चुके हैं अब 
क्यों देर हम ही करते हैं उनको दफ़नाने में। 
मौत जब आती है, साथ ले जाती है झट से 
ज़िंदगी देर नहीं करती साथ उसके जाने में। 
कुछ फ़ासला रख कर मिल रहा था सबसे वो 
शराब नहीं थी कुछ आंसू थे उसके पैमाने में। 

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