हर पन्ना पढ़ा उस ने मेरी किताब का
ज़िक्र जिसमें था फ़क़त मेरे शबाब का।
खुशबु बरस रही थी लफ़्ज़ों से ऐसे कि
हर लफ़्ज़ ही फूल था जैसे गुलाब का।
समन्दर की लहरों में भी उफ़ान था
देख कर के ताव हुस्ने -माहताब का।
उस गली की हवा सदा महकती मिली
जिस गली में घर है मेरे अहबाब का।
रोशन रक्खा है मैंने क़िरदार अपना
चमकता है कवर भी मेरी किताब का।
ईमान ताज़ा हो गया सूफ़ी का फिर से
देख कर के हाथ में प्याला शराब का।
ज़िक्र जिसमें था फ़क़त मेरे शबाब का।
खुशबु बरस रही थी लफ़्ज़ों से ऐसे कि
हर लफ़्ज़ ही फूल था जैसे गुलाब का।
समन्दर की लहरों में भी उफ़ान था
देख कर के ताव हुस्ने -माहताब का।
उस गली की हवा सदा महकती मिली
जिस गली में घर है मेरे अहबाब का।
रोशन रक्खा है मैंने क़िरदार अपना
चमकता है कवर भी मेरी किताब का।
ईमान ताज़ा हो गया सूफ़ी का फिर से
देख कर के हाथ में प्याला शराब का।
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