Thursday, March 31, 2011
शूल से नहीं हमें फूल से डर लगता है -उसके मुरझाने के ख्याल से डर लगता है। दुश्मन की बातों की परवाह नहीं करते -भाई के बस एक त्रिशूल से डर लगता है। घर से तो निकले थे बड़े ही शौक से- सड़क को पार करते हुए डर लगता है। पुराने घर में रह रहे थे दबे ढके हुए- नये मकान में जाते हुए डर लगता है। एक क़दम भी नहीं चलता था मेरे बिना- उसको शहर भेजते हुए डर लगता है।
Wednesday, March 23, 2011
हर रोज़ नयाफूल खिलाती है जिंदगी
हर रोज़ नई खुशबू उड़ाती है जिंदगी।
बरसात कभी सिर्फ गमों की होती है
खुशियों में कभी नहाती है जिंदगी।
रंग-रेज़ की उसे जरूरत नहीं पड़ती
हर रंग में ही रंग जाती है जिंदगी।
गिरगिट भी इतने रंग नहीं बदलता
रंग जितने बदल जाती है जिंदगी।
रंगो का तालमेल बिगड़ जाये अगर
एक दाग बन कर रह जाती है जिंदगी।
हर रोज़ फिर एक नया जश्न होता है
उस के रंग में जब रंग जाती है जिंदगी।
हर रोज़ नई खुशबू उड़ाती है जिंदगी।
बरसात कभी सिर्फ गमों की होती है
खुशियों में कभी नहाती है जिंदगी।
रंग-रेज़ की उसे जरूरत नहीं पड़ती
हर रंग में ही रंग जाती है जिंदगी।
गिरगिट भी इतने रंग नहीं बदलता
रंग जितने बदल जाती है जिंदगी।
रंगो का तालमेल बिगड़ जाये अगर
एक दाग बन कर रह जाती है जिंदगी।
हर रोज़ फिर एक नया जश्न होता है
उस के रंग में जब रंग जाती है जिंदगी।
उसकी आदत न गई अब तक भी तरसाने की
घर आँगन बाट जोह रहे हैं सब उसके आने की।
अब की होली में गुंजिया लाऊंगा बीकानेर की
खबर इस तरह से दी थी उसने अपने आने की।
गुलाल खूब लगाऊंगा गुलाबी गालों पर तेरे
हुडदंग मचेगा जमके होली होगी बरसाने की।
भीगा भीगा अंग होगा रंगो से रंगी हुई अंगिया
कितनी अलहड़ रुत होगी वो तेरे शर्माने की।
ढोल मंजीरे बज रहे हैं चोपालो पर फगुआ के
सब याद दिला रहे हैं मुझको मेरे दीवाने की।
घर आँगन बाट जोह रहे हैं सब उसके आने की।
अब की होली में गुंजिया लाऊंगा बीकानेर की
खबर इस तरह से दी थी उसने अपने आने की।
गुलाल खूब लगाऊंगा गुलाबी गालों पर तेरे
हुडदंग मचेगा जमके होली होगी बरसाने की।
भीगा भीगा अंग होगा रंगो से रंगी हुई अंगिया
कितनी अलहड़ रुत होगी वो तेरे शर्माने की।
ढोल मंजीरे बज रहे हैं चोपालो पर फगुआ के
सब याद दिला रहे हैं मुझको मेरे दीवाने की।
Tuesday, March 15, 2011
फागुन मदमाता आता है
मस्ती का राग सुनाता है।
झीना झीना उनका आंचल
लहर लहर लहराता है।
हम गीत प्रेम के गाए नहीं सपने आँखों में सजाए नहीं
मदमाते नजारों से कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
माथे पर रोली धनकती है
चूड़ी गोरी की खनकती है।
फागुनी भाषा में सतरंगी
कोयलिया खूब चहकती है।
हम फूल चाहत के खिलाएं नहीं मस्ती में रास रचाए नहीं
तुम घर घर जाकर के कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
रस कच्ची अमिया में उभरा है
सुर्ख अधरों पे टेसू निखरा है।
पलाश दहके हैं कपोलों पर
भीगी अंगिया और घघरा है।
उम्र ये बवाल मचाए नहीं उमंगों के गुलाल उडाए नहीं
एक नहीं हजारों से कह दो यह बात हमे मंजूर नहीं।
हम दुश्मनी से नाता तोड़ेंगे
हम धागा नेह का जोड़ेंगे।
अबीर गुलाल होली में लगा
हम दिल को दिल से जोड़ेंगे।
हम होली में झूमें गाए नहीं बिछड़ों को गले लगाएं नहीं
दुनिया से जाकर के कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
मस्ती का राग सुनाता है।
झीना झीना उनका आंचल
लहर लहर लहराता है।
हम गीत प्रेम के गाए नहीं सपने आँखों में सजाए नहीं
मदमाते नजारों से कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
माथे पर रोली धनकती है
चूड़ी गोरी की खनकती है।
फागुनी भाषा में सतरंगी
कोयलिया खूब चहकती है।
हम फूल चाहत के खिलाएं नहीं मस्ती में रास रचाए नहीं
तुम घर घर जाकर के कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
रस कच्ची अमिया में उभरा है
सुर्ख अधरों पे टेसू निखरा है।
पलाश दहके हैं कपोलों पर
भीगी अंगिया और घघरा है।
उम्र ये बवाल मचाए नहीं उमंगों के गुलाल उडाए नहीं
एक नहीं हजारों से कह दो यह बात हमे मंजूर नहीं।
हम दुश्मनी से नाता तोड़ेंगे
हम धागा नेह का जोड़ेंगे।
अबीर गुलाल होली में लगा
हम दिल को दिल से जोड़ेंगे।
हम होली में झूमें गाए नहीं बिछड़ों को गले लगाएं नहीं
दुनिया से जाकर के कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
रंग बिरंगी समीर हो गई
माटी भी अबीर हो गई।
मस्त फागुन के आते ही
धरती झूमके हीर हो गई।
अधरों पर धधका है टेसू
लाज भीगके नीर हो गई।
साँसों में महका है चन्दन
मैं तो बहुत अमीर हो गई।
दुश्मन लग गया गले से
दूर मन की पीर हो गई।
नेह का धागा जोड़ते जोड़ते
जिंदगी भी कबीर हो गई।
फागुन का है अभिनन्दन
उम्र मीठी अंजीर हो गई।
होरी आई है होरी आई
कहती मैं अधीर हो गई।
रंग बिरंगी दुनिया सारी
की सारी तस्वीर हो गई।
माटी भी अबीर हो गई।
मस्त फागुन के आते ही
धरती झूमके हीर हो गई।
अधरों पर धधका है टेसू
लाज भीगके नीर हो गई।
साँसों में महका है चन्दन
मैं तो बहुत अमीर हो गई।
दुश्मन लग गया गले से
दूर मन की पीर हो गई।
नेह का धागा जोड़ते जोड़ते
जिंदगी भी कबीर हो गई।
फागुन का है अभिनन्दन
उम्र मीठी अंजीर हो गई।
होरी आई है होरी आई
कहती मैं अधीर हो गई।
रंग बिरंगी दुनिया सारी
की सारी तस्वीर हो गई।
Saturday, March 12, 2011
ज़लज़ले के बाद का मंज़र- जापान
हर जगह दर्द भरी ख़ामोशी पसरी है
दिल में गज़ब की नाउम्मीदी पसरी है।
आंसुओं की सुनामी रुक नहीं रही
एक अज़ब तरह की उदासी पसरी है।
जलजले की ज़द में सब खत्म हो गया
चारों और तबाही ही तबाही पसरी है।
भूकम्प तो झेल लिया लहरों ने मिटा दिया
आँखों में सबके बहुत वीरानी पसरी है।
दर्द मिला ऐसा सब कुछ खत्म हो गया
चेहरों पर हर एक के मातमी पसरी है।
बेबस बना हुआ हर कोई देख रहा है
दिल में सबके डरावनी बैचनी पसरी है।
दिल में गज़ब की नाउम्मीदी पसरी है।
आंसुओं की सुनामी रुक नहीं रही
एक अज़ब तरह की उदासी पसरी है।
जलजले की ज़द में सब खत्म हो गया
चारों और तबाही ही तबाही पसरी है।
भूकम्प तो झेल लिया लहरों ने मिटा दिया
आँखों में सबके बहुत वीरानी पसरी है।
दर्द मिला ऐसा सब कुछ खत्म हो गया
चेहरों पर हर एक के मातमी पसरी है।
बेबस बना हुआ हर कोई देख रहा है
दिल में सबके डरावनी बैचनी पसरी है।
Monday, March 7, 2011
खरोंचों पे खुशबू वाला मरहम लगा दिया
खुश करने को एक नया करतब दिखा दिया।
किताबें खोल कर के वो बैठ गये सामने
सवालों का उन्होंने ज़मघट लगा दिया।
शौके जुनुं उनका मरने को हुआ ज़ब
नये किस्म का उन्होंने हल्ला मचा दिया।
फैसला होने से पहले मिल लेते उससे हम
ऐन वक़्त पर हमे किस्सा यह सुना दिया।
दरीचे को झट से बंद कर लिया कस कर
बंद करते करते चेहरा मगर दिखा दिया।
वो लम्हें खुबसूरत तितलियों से उड़ गये
जिस्म को अपने हमने पत्थर बना दिया।
खुश करने को एक नया करतब दिखा दिया।
किताबें खोल कर के वो बैठ गये सामने
सवालों का उन्होंने ज़मघट लगा दिया।
शौके जुनुं उनका मरने को हुआ ज़ब
नये किस्म का उन्होंने हल्ला मचा दिया।
फैसला होने से पहले मिल लेते उससे हम
ऐन वक़्त पर हमे किस्सा यह सुना दिया।
दरीचे को झट से बंद कर लिया कस कर
बंद करते करते चेहरा मगर दिखा दिया।
वो लम्हें खुबसूरत तितलियों से उड़ गये
जिस्म को अपने हमने पत्थर बना दिया।
हर बात की रहती कहाँ सबको खबर है
हर शख्श की अपनी अपनी रहगुज़र है।
किसी को मेरी बात का पता नहीं चले
दिन रात आदमी को यही रहती फिकर है।
दीखता है कम डाक्टर आँख का है मगर
मरीज़ ठीक हो रहे हैं उनका मुकद्दर है।
पहचान नहीं पाया उसे कोई भी कभी
इसीलिए वो खुद से भी रहता बेखबर है।
महफूज़ कोई भी नहीं है अब शहर में
दौड़ धूप दुनिया में बड़ी इस क़दर है।
हर शख्श की अपनी अपनी रहगुज़र है।
किसी को मेरी बात का पता नहीं चले
दिन रात आदमी को यही रहती फिकर है।
दीखता है कम डाक्टर आँख का है मगर
मरीज़ ठीक हो रहे हैं उनका मुकद्दर है।
पहचान नहीं पाया उसे कोई भी कभी
इसीलिए वो खुद से भी रहता बेखबर है।
महफूज़ कोई भी नहीं है अब शहर में
दौड़ धूप दुनिया में बड़ी इस क़दर है।
नगमें कुछ पुराने सुना के चले गये
जाते हुए करिश्मे दिखाके चले गये।
हट जाऊं वफ़ा की राह से उनकी मैं
पुराना मरहम जख्म पे लगाके चले गये।
मुफलिसी का मेरी मजाक बनाया यूं
फटी सी एक चादर ऊढाके चले गये।
कोई हसरत आरज़ू तमन्ना न रही
ऐसा वो मुकाम दिखा के चले गये।
मन तो कर रहा था रोने को बहुत
वो आँखों को बे आब बनाके चले गये।
पुराने रिश्तों को निभाने की फिक्र में
नयों को एक तरफा हटाते चले गये।
जाते हुए करिश्मे दिखाके चले गये।
हट जाऊं वफ़ा की राह से उनकी मैं
पुराना मरहम जख्म पे लगाके चले गये।
मुफलिसी का मेरी मजाक बनाया यूं
फटी सी एक चादर ऊढाके चले गये।
कोई हसरत आरज़ू तमन्ना न रही
ऐसा वो मुकाम दिखा के चले गये।
मन तो कर रहा था रोने को बहुत
वो आँखों को बे आब बनाके चले गये।
पुराने रिश्तों को निभाने की फिक्र में
नयों को एक तरफा हटाते चले गये।
नाकामियों से डरना छोड़ दिया मैंने
गलत राह पर चलना छोड़ दिया मैंने।
फ़िज़ा समन्दर की रास आ गई जबसे
सहरा में सुलगते रहना छोड़ दिया मैंने।
जिस्म ने सादगी की चादर ओढ़ ली
शुहरत पाकर मचलना छोड़ दिया मैंने।
फुरकत की रुत जब से घिर आई है
घड़ी घड़ी संवरना छोड़ दिया मैंने।
सूखा कहीं पे सैलाब तूफ़ान पसरा है
इनका ज़िक्र करना छोड़ दिया मैंने।
बदल गया शहरे- निज़ाम जबसे
अर्जे-तमन्ना करना छोड़ दिया मैंने।
मज़बूत इरादों वाला हो गया मैं अब
दिल की हिफाज़त करना छोड़ दिया मैंने।
गलत राह पर चलना छोड़ दिया मैंने।
फ़िज़ा समन्दर की रास आ गई जबसे
सहरा में सुलगते रहना छोड़ दिया मैंने।
जिस्म ने सादगी की चादर ओढ़ ली
शुहरत पाकर मचलना छोड़ दिया मैंने।
फुरकत की रुत जब से घिर आई है
घड़ी घड़ी संवरना छोड़ दिया मैंने।
सूखा कहीं पे सैलाब तूफ़ान पसरा है
इनका ज़िक्र करना छोड़ दिया मैंने।
बदल गया शहरे- निज़ाम जबसे
अर्जे-तमन्ना करना छोड़ दिया मैंने।
मज़बूत इरादों वाला हो गया मैं अब
दिल की हिफाज़त करना छोड़ दिया मैंने।
Subscribe to:
Posts (Atom)