वो शोख़ियां तबस्सुम वो कहकहे न रहे
मिलने के भी अब तो सिलसिले न रहे।
मेरे ख़्याल की दुनिया में तुम मेरे पास थे
हकीकत में तुम कभी मेरे बनके न रहे।
वह चीज़ जिसे हसरत से देखते थे हम
हुस्न फरेब था वह , उसके जलवे न रहे।
तुमने जिन ग़मों से नवाज़ा था मुझको
वह बेमिसाल गम भी तो अब मेरे न रहे।
अज़ब है इस दुनिया का भी चलन यारों
ज़रूरत के वक़्त भी तुम कभी मेरे न रहे।
मेरी उम्मीद मिट गई अगर मिटने भी दो
वो होली, वो दिवाली, वो दशहरे न रहे।
मुझे खबर है ज़िंदगी की आस तुम्ही हो
अब अपने लख्ते ज़िगर भी अपने न रहे।
-------- सत्येंद्र गुप्ता
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