Friday, June 17, 2011

कभी ऊचाइयों से डर नहीं लगता
कभी रुसवाइयों से डर नहीं लगता।
खुशियों से डर लगता है हर वक़्त
कभी उदासियों से डर नहीं लगता।
तैरना आ गया है दिल को जब से
अब गहराइयों से डर नहीं लगता।
मुहब्बत दीवानापन और रतजगे
इन बस्तियों से डर नहीं लगता।
खामोश परछाइयाँ देखी हैं इतनी
अब वीरानियों से डर नहीं लगता।
अपने रूप पर कभी घमंड था हमें
अब बरबादियों से डर नहीं लगता।
जिंदगी भर नादानियाँ की इतनी
अब नादानियों से डर नहीं लगता।


2 comments:

  1. जिंदगी भर नादानियाँ की इतनी
    अब नादानियों से डर नहीं लगता।
    bahut sunder shabdon main likhi shaandaar gajal.badhaai aapko.


    please visit my blog.thanks

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  2. तैरना आ गया है दिल को जब से
    अब गहराइयों से डर नहीं लगता।

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

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