Sunday, September 5, 2010

किश्ती कागज की आती थी बनानी भूल गये

किश्ती कागज की आती थी बनानी भूल गये
बचपन की बातें सारी वह पुरानी भूल गये।
शराब दोस्त बन गयी इस हद तलक अपनी
बेवफा जिंदगी की सारी कहानी भूल गये ।
जग जग के कटा करती थी रात पलकों में
कभी सेज पर महकती थी जवानी भूल गये।
वक़्त से पहले आता था उमीदों का मानसून
जम कर कितना बरसता था पानी भूल गये।
किश्ती लडखडा गई थी हमारी जब से भंवर में
हम राहें वह सब जानी पहचानी भूल गये।
अब हम कहाँ तुम कहाँ वह रात कहाँ गई
मुहब्बत की वह बल खाती रवानी भूल गये।
वो मिलना मिलाना वह उठना बैठनासंग
भूले तो संग गलियों की कहानी भूल गये।

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना...

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  2. अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने और चित्र भी अच्छा है .....
    ....
    (आजकल तो मौत भी झूट बोलती है ....)
    http://oshotheone.blogspot.com

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