देखते देखते जमाने बदल गए
मेरी खुद्दारी के पैमाने बदल गए।
ख़ुशी गम होते हैं अब भी मगर
उनके होने के बहाने बदल गए।
बढ़ गई दीवानगी इस हद तलक
खाका ए पैरहन पुराने बदल गए।
अह्सासे जियां भी वह नहीं रहा
हकीकते दस्तूरे मैखाने बदल गए।
खड़े सिरहाने पे आके मेरे क्यों हो
गले लगने के वे जमाने बदल गए।
नींद जब से आने लगी है हमें कम
सोने के हमारे सिरहाने बदल गए।
पलकों में रख लिया है जब से उन्हें
रहने के अपने ठिकाने बदल गए।
चेहरा नया नहीं है कोई भी मगर
इन्सान क्यों न जाने बदल गए ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment