Wednesday, September 8, 2010

सिर से पाँव तक उसके चादर नहीं आई

सिर से पाँव तक उसके चादर नहीं आई
मुफिलिसी घर से कभी बाहर नहीं आई।
अच्छे दिनों की आस में उम्र कट गई सारी
महकती कोई भी रात बेहतर नहीं आई।
घर तो चमन के बहुतही करीब था उसका
हवा के साथ खुशबु कभी अन्दर नहीं आई।
रस्ते भी तो खोल दिए थे मेहनत ने सारे
तकदीर उसके करीब आकर नहीं आई।
जाने क्यूं अकेला वह सदा ही रह गया
परछाई भी कभी उसके बराबर नहीं आई।

1 comment:

  1. सिर से पाँव तक कभी चादर नहीं आई
    मुफिलिसी घर से उसके बाहर नहीं आई
    bahut khub badhai

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