ज्यों माथे का अभिमान है बिंदी
हर अधर की भी शान है हिंदी।
मेरी भी है तेरी भी है सबकी है
प्यार भरी मुस्कान है हिंदी।
जन जन के हृदय की झंकार है
साहित्य का गौरव गान है हिंदी।
ज्ञान प्रकाश चहुँ और फैलाती
सब भाषाओँ में महान है हिंदी।
मानवता का पाठ पढ़ाती है यह।
सकल गुणों की खान है हिंदी।
जन मानस में खुशहाली भरती
माँ भारत की प्रिय संतान है हिंदी।
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ज्यों माथे का अभिमान है बिंदी
ReplyDeleteहर अधर की भी शान है हिंदी।
मेरी भी है तेरी भी है सबकी है
प्यार भरी मुस्कान है हिंदी।
वाकई...
माथे की बिंदी है हिंदी
सुंदर रचना...
सुंदर !
ReplyDeleteसत्येन्द्र गुप्ताजी की हिंदी पर कविता अच्छी है किन्तु 'सब भाषाओँ में महान है हिंदी' में अपनी भाषा के प्रति अनावश्यक अहंकार है. हमको किसी से लड़कर नहीं, अपितु सब भाषा-भाषियों के साथ मिलकर हिंदी का विकास करना होगा.
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