Monday, August 30, 2010

हद से ज्यादा बे शरम होती है शर्म

नहीं आती जब तलक नहीं आती है
आने को किसी बात पर भी आती है।
हद से ज्यादा बे शरम होती है शर्म
आती है तो सबके सामने ही आती है।
कितनी ही कोशिशें कर के देख ली
कब्ज़े में जिंदगी कभी नहीं आती है।
बुढ़ापे में दम होता नहीं निकलता है
हर सांस उखड़ी उखड़ी सी ही आती है।
महक जिस गम की ताउम्र रहा करती है
आँख में कतराए शबनम बनी आती है।
उम्र रूह की नहीं जिस्म की हुआ करती है
ख़ामोशी भी तो बात करते ही आती है।
दिन तो जैसे तैसे कर गुज़र ही जाता है
कोई शाम बड़ी ही हसीन बनी आती है।

1 comment:

  1. हद से ज्यादा बे शरम होती है शर्म
    आती है तो सबके सामने ही आती है।

    बेहतरीन!

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