Friday, October 30, 2015

गीत लिखूं ग़ज़ल लिखूं कविता लिखूं 
तू  बता तेरी क़िस अदा पे क्या लिखूं। 

तेरी वफ़ाओं का मैं  क़ायल हूँ इतना 
जी नहीं चाहता तुझे मैं बेवफ़ा लिखूं । 

वह सितमगर है तू मेरे पर कुतर दिए 
कैसे बता तुझे फिर  मैं बावफ़ा लिखूं। 

आईने ने भी पूछा यह साया किसका है
एक रहज़न को  कैसे मैं रहनुमा लिखूं। 

मैं क्या तमाम शहर पूछेगा कुछ न कुछ 
कैसे मैं तेरे नाम दिल की दुनिया लिखूं। 

अगर मैं  रोना चाहूं  खुल के रो न सकूँ 
ज़ख्मे दिल की बता मैं क्या खता लिखूं। 

चिराग़े शाम ने अँधेरा तो मिटा ही दिया
मगर दिल किसका जला बता क्या लिखूं। 

जब पूरा ज़िक्र मिसरा ऐ ऊला में हो चुका 
अपने चौदहवीं का चाँद पे बता क्या लिखूं।  

   मिसरा  ऐ ऊला - पहली पंक्ति  




8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-11-2015) को "ज़िन्दगी दुश्वार लेकिन प्यार कर" (चर्चा अंक-2147) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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