परतें प्याज़ की छिलती चली गई
आँखों में पानी भरती चली गई।
दो घूँट शराब गले से क्या उतरी
हक़ीक़त बयान करती चली गई।
मुहब्बतों का बोझ ढ़ोते ढ़ोते ही
घिस गई रिदा फटती चली गई।
हसरत साथ रहने की उम्र भर वो
लकीरें हाथ की मिटती चली गई।
कब तक दिल भटकता दर ब दर
क़यामत उस प गुज़रती चली गई।
ज़िंदगी छुट गई थी जिस गली में
सदियाँ वहीँ सिमटती चली गई।
दास्ताँ दुनिया को आज भी याद है
नीम के पेड़ से लिपटती चली गई।
रिदा - चादर
आँखों में पानी भरती चली गई।
दो घूँट शराब गले से क्या उतरी
हक़ीक़त बयान करती चली गई।
मुहब्बतों का बोझ ढ़ोते ढ़ोते ही
घिस गई रिदा फटती चली गई।
हसरत साथ रहने की उम्र भर वो
लकीरें हाथ की मिटती चली गई।
कब तक दिल भटकता दर ब दर
क़यामत उस प गुज़रती चली गई।
ज़िंदगी छुट गई थी जिस गली में
सदियाँ वहीँ सिमटती चली गई।
दास्ताँ दुनिया को आज भी याद है
नीम के पेड़ से लिपटती चली गई।
रिदा - चादर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2130 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह क्या बात है...। बहुत ही उम्दा लेखन की प्रस्तुति। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
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