जब ज़ाम होठों से हमने लगाया
क़सम ख़ुदा की ख़ुदा याद आया।
जाने क्या सिफ़त है शराब में ऐसी
क़तरा क़तरा ज़वाब इसका आया।
वहशते दिल का आलम मत पूछो
दरवाज़ा ऐ ज़न्नत भी खुला पाया।
क्या ख़ूबसूरत शय है ये शराब भी
फरिश्तों ने इसे होठों से लगाया।
आश्ना कोई मिले तो पूछें उस से
शराब दर्दे दवा है कि है सरमाया।
रस्ते में दैरो दरम के भी फिर तो
मय परस्ती को मैक़दा खुलवाया।
शुक्र गुज़ार हूँ साक़ी तेरा बहुत मैं
तूने मेरे सनम से मुझे मिलवाया।
दैरो दरम - मंदिर मस्जिद
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