Sunday, September 20, 2015

तेरे  गेसू संवार  क्या करते 
हम ग़ैर से प्यार क्या करते।
वास्ता नहीं था उसे  मुझसे  
उसके नख़रे यार क्या करते।
बरसी घटा कहीं  और जाकर 
बारिश का इंतज़ार क्या करते। 
खता हो गई थी हमसे ही तो  
बार बार  इसरार क्या करते।  
सब्र नहीं था वहशते दिल को 
उतर गया ख़ुमार  क्या करते। 
फूल खिले थे  खुशबु नहीं थी 
ज़िंदगी  गुलज़ार क्या करते। 
दिल के रिश्ते बने दर्द के रिश्ते 
बदल गए क़िरदार क्या करते। 
शमां ने जलना था तमाम रात 
हम शबे ग़म गुज़ार क्या करते। 


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