Tuesday, September 29, 2015

ख़ुशी को किसी की नज़र लग गई 
या ग़मों  को मेरी ही उम्र लग गई। 

दिन दो चार मांगे थे जीने के लिए 
मौत को पहले ही  ख़बर लग गई।

बेहद ही उदास थे रात में लोग हम
आँखे तर थी फिर भी तो लग गई। 

यह पूछो वक़्त से शायद वह बताये 
आग़ तो लगनी थी किधर लग गई। 

दर्द छिपाकर रक्खा था दिल में तेरा 
इसकी भी दुनिया को खबर लग गई। 

ज़िन्दगी भी वफ़ा न कर सकी कभी 
मौत की उसको भी  नज़र लग गई। 

एकदम  चूम लिए होंठ  मैंने भी तेरे
मुझको भी तो हवाए शहर लग गई।  




  

Sunday, September 27, 2015

उनकी आँखों में मेरे इश्क़ का नूर था 
मेरी आँखों में भी गज़ब का सुरूर था। 

ख़ुदा को भी जाने यह क्या मंज़ूर था 
चटख गया वह हीरा जो मशहूर  था। 

भले ही मुफ़लिसी में पैदा हुआ था मैं 
दिल मगर  अपना यह  कोहिनूर था। 

वह जिनसे उम्मीदें लगाये बैठा था मैं  
शहर उनका अब  तो बहुत  ही दूर था। 

ज़ख्म ताज़े थे मरहम भी पास न था 
वक़्त का  भी शायद यही  दस्तूर था। 

मैक़दे की सफ़ में बैठा था मैं भी अब 
इश्क़ का सौदा था  मैं भी मज़बूर था। 

            सफ़ --पंक्ति 


Friday, September 25, 2015

एक बेवफ़ा को भूल से हम बावफ़ा समझे 
उसकी हर  ख़ता को  उसकी अदा समझे। 

हद से गुज़र गए ज़नूने इश्क़ में जब हम 
दर्द को ही फिर तो अपना आश्ना समझे। 

माना कि उसके इश्क़ में रहता हूँ  बावला 
मज़ाल क्या किसी की मुझे बावला समझे। 

दरवाज़ा अपने घर का खुला रखता हूँ सदा 
नहीं चाहता मुझे  कोई भी लापता समझे। 

इक़ शमां रह गई जलती, वह भी  उदास है 
दिल में कुछ और है जलने के सिवा समझे। 

बेतलब कुछ भी मिले मज़ा उतना आता नहीं 
फिर भी उसकी मर्ज़ी को उसकी रज़ा समझे। 

ज़िंदगी भी हैरान है  ये ढिठाई  मेरी देख कर 
मिट गए  उसके लिए उसे जाने क्या समझे।

नक़्श को अपने मुस्सविर पर भी क्या नाज़ है 
सब कुछ समझे उसे वह अपना ख़ुदा समझे।  

Sunday, September 20, 2015

तेरे  गेसू संवार  क्या करते 
हम ग़ैर से प्यार क्या करते।
वास्ता नहीं था उसे  मुझसे  
उसके नख़रे यार क्या करते।
बरसी घटा कहीं  और जाकर 
बारिश का इंतज़ार क्या करते। 
खता हो गई थी हमसे ही तो  
बार बार  इसरार क्या करते।  
सब्र नहीं था वहशते दिल को 
उतर गया ख़ुमार  क्या करते। 
फूल खिले थे  खुशबु नहीं थी 
ज़िंदगी  गुलज़ार क्या करते। 
दिल के रिश्ते बने दर्द के रिश्ते 
बदल गए क़िरदार क्या करते। 
शमां ने जलना था तमाम रात 
हम शबे ग़म गुज़ार क्या करते। 


Saturday, September 19, 2015

नए पते पर पुरानी चिठ्ठी मिली 
पता मेरा सब से ही पूछती मिली। 

मुद्दत बाद चिठ्ठी  को देख कर 
दिल को एक तसल्ली  सी मिली। 

वक़्त की रौंदी  हुई ज़मीं पर जैसे 
मुहब्बत  की  कोई  हवेली मिली।

याद आ गया  महका  हुआ  बाग़ 
हर तह में ख़ुश्बू वो लिपटी मिली। 

एक बार नहीं  हज़ार बार उसे पढ़ा 
ज़िंदगी उन पलों में सिमटी मिली। 

भुला दिया  बेरहम  वक़्त ने  जिसे 
खबर आज उस आशिक़ी की मिली। 




Saturday, September 12, 2015

दरक़ रही थी  दीवार  क्या करते 
अच्छे नहीं थे आसार क्या करते। 

ता उम्र मर मर कर ही जिए हम 
अब ख़ुद को दाग़दार क्या करते। 

नश्तर से भी  खरोंच  नहीं लगी 
इस ज़ुबान का  यार क्या  करते। 

हर हाल में रहने आदत है हमको 
क़यामत का इंतज़ार क्या करते। 

चेहरे धोखा देते हैं या ये क़िस्मत 
बेवज़ह की  तक़रार  क्या  करते। 

सुबहो शाम ज़ाम पीने में ही कटी 
इस तलब का भी यार क्या करते। 

सुक़ून चाहते  तो मिल भी जाता 
अब दिल को निखार क्या करते। 

Wednesday, September 9, 2015



जब ज़ाम होठों से  हमने लगाया 
क़सम ख़ुदा की ख़ुदा याद आया। 

जाने क्या सिफ़त है शराब में ऐसी  
क़तरा क़तरा ज़वाब इसका आया। 

वहशते दिल का आलम मत पूछो  
दरवाज़ा ऐ ज़न्नत भी खुला पाया। 

क्या ख़ूबसूरत शय है ये शराब भी 
फरिश्तों ने  इसे  होठों से लगाया।

आश्ना कोई मिले तो पूछें उस से 
शराब दर्दे दवा है  कि है सरमाया। 

रस्ते में  दैरो दरम के भी फिर तो  
मय परस्ती को मैक़दा खुलवाया। 

शुक्र गुज़ार हूँ साक़ी तेरा बहुत मैं  
तूने मेरे सनम से मुझे मिलवाया।  

    दैरो दरम - मंदिर मस्जिद 

Wednesday, September 2, 2015

कहावत है कि  नाम में क्या रखा है 
पर कुछ लोगों के लिए तो नाम में ही सब कुछ रखा है। 
उसने अपने बेटों के नाम  तूफ़ान और भूचाल सिंह रखा है 
बेटी का नाम सुनामी रखा है। 
उसे यक़ीन है कि तूफ़ान ,भूचाल सुनामी 
कभी आ भी गए तो उसे डर  नहीं लगेगा 
क्योंकि ये सब तो उसके हैं उसे नुक्सान नहीं पहुंचाएंगे। 
प्रकृति प्रेमी सूरज प्रकाश उनकी पत्नी संध्या ने 
अपने बेटों के नाम मानसून, बादल और बिटिया के 
 नाम वर्षा और रिमझिम रखा है।  उनका कहना है 
कि उन्हें सूखे का अहसास नहीं होता।
पर्वत सिंह ने अपनी बिटिया का नाम आइस बर्फ़  रखा है 
उन्हें जून के महीने में भी ठंड का अहसास बना रहता है। 
गरीबी से जूझने के लिए , समाज में अपना दर्ज़ा बनाने को 
गरीब दलित मिठाई लाल ने अपने बेटों के नाम 
मुलायम सिंह,राज नाथ सिंह ,कल्याण सिंह, बाल ठाकरे 
मन मोहन सिंह और बिटिया का  नाम जय ललिता रख दिया। 
मिठाई लाल को गर्व है कि सब के सब एक ही छत के नीचे 
बड़े ही मेल मिलाप से रहते हैं आपस में झगतड़े भी नहीं 
सब उसके कहने में हैं। 
यह उसकी संतुष्टि है या सनक यह तो पता नहीं 
पर वह अब मिठाई लाल के नाम से नहीं जाना जाता 
राज नेताओं के बाप के नाम से मशहूर है 
उनका घर भी राज नेताओं के नाम से जाना जाता है।